गणित के समीकरणों की तरह रिश्तों को हमेशा हल ही तो करती हूं,
मेरे मन के इतिहास को कुरैदे कोई ना जाने कितने आंसू, आशाएं और इच्छाएं दफ्न होगीं दिल के किसी कोने मे,
मेरे तन के भूगोल को टटोलें कोई मिलेंगे तीव्र, तीक्ष्ण गहरे घाव,सारा बवाल तन का ही तो हैं साहब! नहीं तो अहिल्या पाषाण में क्यों बदलती भला!
हिन्दी मेरी अच्छी नहीं क्योंकि कटु नहीं बोल पाती, संस्कारों की घुट्टी जो घोलकर पिलाई है मां बाप ने।।
अंग्रेजी बोलने पर लोग कहते हैं देखो तो अंग्रेजन बन रही है ,
कितना हास्यकर होता है ना! हम नारियों के लिए सभी विषयों का ज्ञान रखना।।
#हास्यकर