नाच न जाने आंगन टेढ़ा
फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पुणे में जब एक्टिंग का कोर्स शुरू हुआ तो इसकी बोर्ड ऑफ स्टडीज़ के सदस्य सिलेबस को फ़ाइनल करते समय एक बात को लेकर बहस में उलझ गए।
कुछ लोग कहते थे कि डांस या नृत्य फ़िल्म अभिनय की जान है, अतः यहां पढ़ने वाले को इसमें पारंगत बनाया जाना बहुत ज़रूरी है।
जबकि दूसरी ओर कुछ प्रोग्रेसिव सोच के लोग इस बात पर अड़े थे कि नाच- गाना बहुत हो चुका। फ़िल्मों को इससे आगे निकालने के लिए ही तो एक्टिंग सिखाई जा रही है। जब जहां रोल में डांस की बहुत ज़रूरत होगी, तब कलाकार अपने आप इसका अभ्यास कर लेंगे। वैसे भी हर युवा अपनी ज़िंदगी में पार्टियों और शादी- ब्याह के कारण थोड़ा बहुत नाचना तो जानता ही है।
लिहाज़ा जब इस संस्थान से निकले कलाकारों की पहली खेप पर्दे पर आई तो लोगों ने देखा कि ये एक्टर्स नाच को अहमियत नहीं देते।
जया भादुड़ी (बच्चन), राधा सलूजा, रेहाना सुल्तान, रीना रॉय और इनके सफल होने के बाद आयी विद्या सिन्हा, ज़रीना वहाब, ज़ाहिरा से लेकर पूनम ढिल्लों, अनीता राज, जाहिदा और यहां तक कि राखी भी डांस नहीं जानती थीं।
जया बच्चन के लिए तो कई बार रोल्स में से डांस हटाए गए। ज़रूरी होने पर डुप्लीकेट का सहारा भी लिया गया। "जंज़ीर" में 'चक्कू- छुरियां तेज़ करालो' गीत में दीवार पर नाचती हुई जया की छाया को दिखाया गया जहां कोई और डांसर उनके लिए नाच रही थी।
नायिकाओं के लिए तवायफ़ जैसे पारंपरिक रोल्स छोड़ कर चश्मे, ड्राइविंग और ऑफिस बैग वाले आधुनिक किरदार लिखे जाने लगे।
लेकिन किसी बुनियादी बदलाव की बयार इतनी आसानी से आंधी में नहीं बदलती।
लेकिन मज़े की बात, अगलेे दो- तीन दशकों का फ़िल्मो- मीटर देखने से ये जाहिर हुआ कि सफ़लता के शिखर पर उसी हीरोइन के नाम का डंका बजा जो अभिनय के साथ "ता- ता- थैया" अर्थात थिरकने में भी निपुण हो।
सफ़लता का ये सुनहरा ताज़ हेमा मालिनी से बरास्ता मुमताज़, रेखा, श्रीदेवी, जयाप्रदा और माधुरी दीक्षित तक पहुंचा।
ये सभी अपने आकर्षक नृत्यों की बदौलत ही दर्शकों की चहेती बनीं। श्रीदेवी और माधुरी ने तो नृत्य के नए आयाम रचे।
ज़ीनत अमान, परवीन बाबी, डिंपल कपाड़िया, पद्मिनी कोल्हापुरे, जूही चावला, टीना मुनीम, तब्बू जैसी कॉन्वेंट जेनरेशन को भी पारंपरिक डांस सीखना पड़ा।
उधर ये भी सच है कि फ़िल्म इतिहास में अपने ख़ूबसूरत जलवों के रुपहले अक्स अधिकांश नायिकाओं ने नृत्य के सहारे ही कालजयी बनाए हैं।
नई उमर की नई फसल आज पिछली सदी के सितारों को उनके बेहतरीन डांस नंबर्स के कारण ही जानती है।
लेकिन पिछली सदी का ये दौर कजरारे -कजरारे - कारे नैनों वाली ऐश्वर्या राय तक ही चला।
काजोल, रानी मुखर्जी, विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना कैफ, करीना कपूर, दीपिका पादुकोण, कंगना रनौत, आलिया भट्ट, तापसी पन्नू, श्रद्धा कपूर आदि ने किरदारों को केवल डांस के इर्द - गिर्द घूमने से रोका। आज तो हम वैश्विक सिनेमा के एक ऐसे दौर में हैं जहां दर्शक किरदारों के संग जीते हैं, केवल नाच- गानों से नहीं बहलते!