इधर उधर कई मंजिल है चल सको तो चलो 
बने बनाए हैं साँचे , जो ढल सको तो चलो 
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
 मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो 
हर एक सफर को है महफूज रास्तों की तलाश 
हिफाजतों की रिवायत बदल सको तो चलो 
कहीं नहीं कोई सूरज , धुआँ धुआँ है फिजां
खुद अपने आपसे बाहर निकल सको तो चलो
- निदा फाजिली -