मुझे एक अद्भुत माँ ने जन्म दिया जिसने समझने योग्य होते ही मुझे बताया कि मेरी प्रथम माँ, मेरी मातृभूमि माँ भारती है क्योंकि मेरी माँ की माँ उनकी माँ और पीढ़ियों में होती रही सभी माताओं ने जिस माँ से अपना शरीर प्राप्त किया वो भारत माँ है, हमारी आदि जननी. सभी माताओं के शरीरों को मूल पञ्च तत्व भारत माँ ने ही दिए थे – क्षिति, जल, अग्नि, आकाश, वायु. उनके जीवन ने भारत माँ के समीर में श्वासें भरी थीं और इसी का अन्न –जल ग्रहण कर वे अपनी संतानों को जन्म देने का सामर्थ्य प्राप्त कर पायी थीं इसलिए जब माँ को प्रणाम करना हो तो पहला प्रणाम माँ भारती को ही करना चाहिए.
उसके पश्चात विद्या, वाणी, लेखनी, गौ, गंगा, वनस्पतियाँ और तुलसी फिर लक्ष्मी. इनको प्रणाम करने के बाद जब आप घर में प्रवेश करें तो पहले दादी माँ, नानी माँ, बड़ी माँ, छोटी माँ, मौसी माँ किन्तु यहाँ भी उसकी सूची पूरी नहीं होती और सभी को अपने से पहले स्थान देते हुए वो हर बार एक सोपान और ऊँची हो जाती है.
मेरी माँ थोड़ी अलग है. उसने मुझे खेलने को गुड़िया नहीं दी कभी न ही सुनायी किसी राजकुमार या परी की कहानी. उसने मुझे बड़ा किया सुनाकर लोपामुद्रा और गार्गी के ज्ञान का चमत्कार. दिखायी दुर्गावती और लक्ष्मीबाई की चमकती तलवारों की बिजलियाँ और अहिल्याबाई की धर्म परायणता.
मेरी माँ ने मुझे वो सब बताया जो वो जानती है किन्तु मुझ पर अपनी इच्छा या अपेक्षा किसी भी बात का बोझ नहीं डाला. उसने मुझे सशक्त बनाया इतना कि मैं ले सकूँ अपने निर्णय और सामर्थ्य रखूँ उनके परिणामों को स्वीकारने का. मेरा स्वाभिमान कोई डिगा न सके. कोई भी झंझावात मुझे गिरा न सके.
मेरी माँ कभी मेरी प्रशंसा नहीं करती, मेरा पक्ष भी नहीं लेती किन्तु मैं जानती हूँ मैं जो भी हूँ पूरा का पूरा उसका आशीर्वाद हूँ.
मेरी माँ का ईश्वर से कोई अलग सा नाता है, मैंने उसे रामायण पढ़ते समय उसमें डूब कर रोते, मुस्कराते भावुक होते देखा है. तब उसकी आँखे बंद होती हैं संभवतः वो ईश्वर के साथ होती है क्योंकि उस क्षण उसके चेहरे पर एक अद्वितीय प्रकाश होता है, और वो बाहर के संसार से असम्पृक्त होती है.
मेरी माँ के इन अलग अलग रूपों में कोई न कोई रूप आपकी माँ का होगा या आपकी माँ में कोई न कोई रूप मेरी माँ का होगा.
भारतवर्ष की सभी माताओं को सादर प्रणाम.