जब एक डॉक्टर अपना क्लीनिक खोलता है तो वहां उन रोगों के नाम लिखे होते हैं जिनका वो उपचार करता है, उन सेवाओं के बारे में लिखा होता है जो वहां दी जाती हैं। ऐसे कुछ बोधवाक्य भी जैसे - "मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है"!
विद्यालय या कॉलेज के बाहर लिखा होता है - ज्ञान हेतु प्रवेश लें, सेवा हेतु प्रस्थान करें।
एक फल- सब्ज़ी वाला जब ठेला लेकर आपकी गली में आता है तो यही कहता है कि फल लो, सब्ज़ी लो!
वह यह नहीं चिल्लाता कि फल - सब्जियां खरीदो। शिक्षा संस्थान ये नहीं कहते कि शिक्षा खरीदो। डॉक्टर ये नहीं कहते कि उपचार खरीदो।
क्योंकि हम सब जानते हैं कि किसी चीज़ या सेवा का मूल्य होता ही है।
यदि कोई जनता से ऐसा कहता है कि वो ये मुफ़्त देगा, वो मुफ़्त देगा, तो वह जनता को पिछड़े और अविकसित युग के दौर में लेे जाना चाहता है।
वह चाहता है कि जनता भेड़ बनी रहे और वो गड़रिया या चरवाहा!