भटकते रास्ते
बावरा हो रहा यूँ ही, यौवन के उन्माद से तू ।
यत्न किए लेकिन, नादान भटक गया मूढ़ जग में तू ।।
प्रासाद तू समझता, खंडहर है वह।
कोई प्रत्याशा न कर, तेरे नीड़ विनाश की चंचलता है यह।।
अच्छा है बेसुध होना, इतना नहीं कि राह भटकना ।
भटके हो जिस कारण तुम, वह जड़ उखाड़ना ।।
थाम लेना पग के लचीले वेग अपने, महज़ दूरी वास्ते ।
दूरी यही अहसास हो तुम्हें, भटके किसी और के वास्ते ।।
-Kailash Jangra