इजाजत नहीं है मुझे अपनी ही कदमों को आगे या पीछे करने का,
इजाजत क्यों नहीं है मुझे अपने ही नजरिए को वास्तविकता देने का?
क्यों हर मोड़ पर खुद को एक नए चेहरे से वाकिफ कराना पड़ता है ?
क्यों अपने ही फैसले पर चलने से खुद को ही बार-बार मनाना पड़ता है?
क्यों इजाजत नहीं है मुझे खुद की ही नजरों से खुद को ही देखने का?
क्या जरूरी है हर कदम पर दुनिया और समाज का नजरिया?
-Shikha