तेज, बहुत तेज जा रहे थे
जिन्दगी की दौड़ में,,,
अपनो को छोड़, कर्तव्यों से मुँह मोड़कर,,,
कुदरत ने आकर गति जरा और क्या बढ़ा दी,,,
कि,,,
अब जिन्दगी थमने का इन्तजार होने लगा है!!!
रखी जिनसे दिल की दूरियाँ बनाकर सदा,,,
लगते थे पराए जो अपने जहां में,,,
आज उन सभी से भी प्यार होने लगा है!!!
-Khushboo bhardwaj "ranu"