यूँ तो बीते रे कई बार,फिर एक दिसम्बर बीत जाने को है।
आये-गये नए साऽऽल कितने,सुगबुगाहट फिर से छाने को है।।
मृगमरीचिका सम,दिखतीं हैं खुशियां सभीं।
न आयीऽ भावना वो भली,आशायें टूट बिखर जाने को हैं।।
यादें आतीं हैं जब भी उनकीऽऽ,सामनेऽ मेरेऽ.....
अश्रु आंखों के नदियाओं की धाराओं का संग छोड़ देती हैं।।
आ भी जाऽऽओऽऽ श्याऽऽमाऽऽ दुलारी,मेरी प्याऽरीऽऽ।
करो न देऽर अबकी वेऽऽर,प्राऽण मन तन से जाऽनेऽऽ को हैं।।
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#तड़पती_रूह
#दर्द_छलक_जाता_है
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#सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Shayri by सनातनी_जितेंद्र मन : 111772097

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