प्रेरणा स्त्रोत
मुंबई की मीरा रोड पर मीरा बाजार में मीरा नाम की बारबाला नृत्य द्वारा शाम को रंगीन कर रही थी। वह अपनी कला का लाजवाब प्रदर्शन कर रही थी पर उसका कद्रदान वहाँ कोई नही था। सभी कामुकता से उसके हाथ से जाम लेकर खुश होकर नोटों की बरसात कर रहे थे। वह भी यह समझती थी और अपना फर्ज पूरा कर रही थी। मदिरा प्रेमियों के भरपूर नोट बटोर रही थी। उसकी आभा से पूर्ण ओजस्विता और भरपूर गंभीर चेहरा मनन चिंतन कर विवश कर रहा था।
उसके निजी जीवन के विषय में जानकर आश्चर्य व विस्मय हो रहा था। वह गरीब परिवार की थी पर क्रियाशील उच्च शिक्षा प्राप्त थी। वह प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय होने पर सूर्य देवता को नमस्कार करके अपने माता पिता को प्रणाम करके अन्न देवता के प्रति आभार मानकर दिन का शुभारंभ करती थी।
मंदिर में श्रद्धा व भक्ति के पुष्प चढ़ाकर प्रभु का आशीर्वाद माँगती थी। दोपहर को असहाय, विकलांग व गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देती थी। वह प्रतिदिन नृत्य से प्राप्त धन को बीमार गरीबों की सेवा में खर्च करती थी शाम को बार में बारगर्ल बनकर धन की कमाई करती थी, परंतु तन का सौदा कभी नही करती थी।
मेरे मित्र विनोद ने उसको परखकर एक दिन सबको आश्चर्यचकित कर दिया। उसने अपने माता पिता एवं इकलौती बहिन को मीरा के संबंध में बतलाया। पहले तो यह जानकर कि वह मीरा को चाहता है वे सभी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने मीरा को घर लाने के लिए कहा। वह उसे माता पिता के पास घर लेकर आया, उसकी बातचीत एवं व्यवहार से उसके परिवार वाले बहुत खुश हुए विशेष रूप से उसकी माँ एवं उसकी बहिन ने यह रिश्ता सहर्ष स्वीकार करने में सहयोग दिया।
एक दिन वे दोनो उसी बार साथ साथ गए। वहाँ पर सभी ने उनका स्वागत किया। वे सभी सम्मान में भावविभोर थे, क्योंकि वे दोनों पति पत्नि के रूप में वहाँ पर मौजूद थे। बार के बाहर एक बैनर लगा था जिस पर प्रेरणास्त्रोत लिखा था।
आज दोनों का जीवन सुखी एवं वैभवपूर्ण बीत रहा है। मीरा एक कुशल गृहणी के रूप में बखूबी अपने बच्चों के साथ परिवार को सँभाल रही है।