सच ही कहा गया है - नेकी कर दरिया में डाल ( Be discreet with your kindness)
इसी संदर्भ में , जब तुलसीदास ने रहीम से पूछा -
" ऐसी देनी देन जू - कित सीखे हो सैन।
ज्यों-ज्यों कर ऊँचे करो, त्यों-त्यों नीचे नैन॥"
अर्थ - तुम ऐसे दान क्यों देते हो? ऐसा तुमने कहाँ से सीखा? जैसे जैसे तुम अपने हाथ दान करने के लिये उठाते हो, वैसे वैसे अपनी आँखें नीची कर लेते हो। ऐसा क्यों ?
रहीम का उत्तर -
" देनहार कोई और है, देवत है दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, याते नीचे नैन॥"
अर्थ - देने वाला तो कोई और - यानि ऊपरवाला भगवान है - जो दिन रात दे रहा है , लेकिन लोग भरम में रहते हैं कि मैं दे रहा हूँ, इसलिये मेरी आँखें लज्जावश झुक जाती हैं।