शीर्षक- पानी
हो गई बंजर ज़मी और आसमां भी सो रहा
पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा
युगों युगों से देश में होती नही थी यह दशा
व्यर्थ जल बहाव में आज आदमी आ फसा
पशु पक्षियों में शोर है संकट बहुत घनघोर है
देखे नही फिर भी मनु लगता अभी भी भोर है
बूंद भर पानी को व्याकुल बाल जीवन हो रहा
पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा
उनको नही है पता जिनके यहा सुविधा भरी
देख ले कोई उन्हे खाली है जिनकी गागरी
बहे जहा अमृत की गंगा यमुना नदी की धार है
उस नगर उस क्षेत्र में भी पेय जल में तकरार है
सो गई इंसानियत रुपया बड़ा अब हो रहा
पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा
अब भी नही रोका गया व्यर्थ पानी का बहाना
होगा वही फिर देश में जो चाहता है जमाना
संदेश दो मिल कर सभी पानी बचाना पुण्य है
पानी नही यदि पास में तो भी ये जीवन शून्य है
पानी बचे जीवन बचे ज्योति उज्ज्वल हो रहा
ईश्वर करे आगे ना हो व्यर्थ जो कुछ हो रहा
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश