जहन में बात कोई यूं दफन है।
जिंदा हो फिर जीना चाहती है।
चीख हार के थक जाती है।
थकी वो उम्मीद खोजती है।
देख उम्मीद कोशिश करती है।
एक सहारा एक जगह चाहती है।
पाया सहारा यूं वो खोती है।
खो उम्मीद बेजबान रहती है।
खुद का दम घोटती रहती है।
जाके फिर वहीं दफन हो जाती है।

-आचार्य जिज्ञासु चौहान
(बिट्टू श्री दार्शनिक)

Hindi Shayri by बिट्टू श्री दार्शनिक : 111807410

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