घर पूछता है .....
मुझसे अक्सर यही सवाल ........
क्या जाना है तुमने कभी मेरा हाल ?
मिलजुलकर बैठा करता था कुटुम्ब सारा
खुलता था जहाँ सबकी ख़ुशियों का पिटारा
सुख - दुःख को जहाँ हक़ से बाँटा जाता था
समय न जाने कब यूँ ही पल में बीत जाता था
तरक़्क़ी की चाह में अब तू कहीं खो गया है
प्यार - दुलार का अर्थ, सब तू बिसरा गया है
घर छोटा ही सही पर कुनबे में प्यार घनेरा था
अजनबी जैसे हो गए सब जहाँ अपनों का बसेरा था
तीज - त्योहारों पर जिसे तू स्वयं नाज़ों से सँवारता था
मैं नहीं महज़ ईंटों का ढाँचा, तेरे सपनों को सकारता था