किताब नहीं कोई, ना ही कोई किस्सा है,
जीना है प्रेम-प्रेम जिंदगी का हिस्सा है।
भटकते हुए थक,अधर में लटक जाओगे,
पड़े मरघट में सोचकर यही पछताओगे।
मुट्ठी बांध आये थे, खोल हाथ जाओगे,
प्रेम ना दिया भला! फिर कैसे मुक्ति पाओगे।
#प्रेम_समर्पण
#प्रेमजोग
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Shayri by सनातनी_जितेंद्र मन : 111818284

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