लालच में इंसान ने उससे
ना जाने कैसी प्रीत निभाई
उपर से प्यार जताता था
अंदर से वो बड़ा बेहयाई
मांग ना करता किसी चीज़ की
पर मुंह पे हरदम थी कड़वाई
अर्धाग्नि कहता वो अपनी बीवी को
हरकतों में करता उसे पराई
लोभ जब उसका तृप्त हो जाता
बस उस दिन ना करता वो बेपरवाही
लालच में इंसान ने उससे
ना जाने कैसी प्रीत निभाई

-Sakshi

Hindi Poem by Sakshi : 111861013

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