हम जो भी जीवन पर्यन्त करते है स्वंय के लिए ही |
उपकार , सेवा का नाम देना केवल अहं की स्थापना है ,
प्रकृति स्वंय में पूर्ण और संरक्षित है | उसे अनुकूल बनाये रखना स्वंय की रक्षा है | व्यक्ति का आचरण व्यवहार उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं |

Hindi Thought by Ruchi Dixit : 111877660

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now