मैं और मेरे अहसास

चिराग बोला ये सुबह क्यूँ होती है भला,
नीद तोड़ चैन सुकूं को क्यूँ धोती है भला?

रूहों के मिलन के लम्हे लुटने के लिए,
चारो और उजाले को क्यूँ बोती है भला?

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111878423

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