(1) मेरे कविता संग्रह से कुछ कविताएं
=============*•••तूफ़ान,,
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(तरनी =नदी ...पारावार=सागर)तूफ़ान,,
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(पेंटिंग - सृजन के लिए लिखी मेरी कविता
इसी पेंटिंग चित्र पर लिखनी थी, आप सब भी पढिये ...)
सुन तो
नॉका तू पतवार मैं बन जाऊं तो
तू दृढ़निश्चयी भरोसा मैं हो जाऊं तो
हाँ...इक बात और
पार उतरना है गर,
तो डूबने का डर खोना होगा
सुनते हैं , दरिया
समन्दर को गहरा बनाती है
उसी ठहराव के सहारे
पारावार,
आ तलहटी छूते हैं
मैं तरनी,
रख एतबार मुझपर
घूँट घूँट गटक मुझे
परे धर खारापन सारा
आ रूह की ओर चले
और ,
साथ साथ चलें
जिस्मो को कुर्वत चाहिये
और,
रूह के अपने पंख होते हैं,
उतार चढ़ाव और हिचकौले
हमें मिलकर सहने हैं
तो ,चल ...आ,
ज़िन्दगी के इस
तूफ़ानी समन्दर में ,
बिना डरे,
अपनी नाव खेते हैं...
प्रज्ञा शालिनी
(2) "वनिता,,
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वो अधपकी
वो अधकच्ची सी, एक उम्र बिताई औरत
जिसके भीतर यौवन और अल्हड़ता उसके
संग ,साथ विचरता है किसी मासूम बच्चे सा,
हाँ सच ,वो औरत
एक अदत औरत ही तो है....
परवाह नही उसे, दीन की, न दुनिया की
फक्कड़पन, अल्हड़पन, अपनेपन में सराबोर ..
कर जाती है कोरा प्रेम "क्या कहेगा ,,
की परवाह , बिना...
इसीलिए बहुतों के मन कतई भाती नही है
ब,वजूद इसके सरक जाती है मन भीतर
बड़ी सहजता से आहिस्ते आहिस्ते
बहुतेरी तक़रार में रूठती मनाती हुई
बस , फ़क़त एक औरत बन…
जानती है सब...
पहचानती है, हर इक नज़र की तासीर, गुनी है बहुत
लेनदेन के हर सिक्के की खनक चीन्ह जाती है
फटाक से ,
रसोईघर का स्वाद बेस्वाद पहचानती है,चटाख से
फ़िर दिल से पेट तक जाने वाले राज का रास्ता भी
जान जाती है ,गजब से ,
कुशल है बहुत, लाली पाउडर में पारंगत भी
कहाँ कब, कितनी सुर्खी होठों पर खर्च करना है
कब सफेदी देनी है बालो को , और कब, जीवन को
बाहर नॉकरी, घर बच्चों की चाकरी का, तालमेल
बेहद खूबी से करती चलती है
वही औरत,
हँसती हैं ठहाकों खिखलाहटों से, फ़िर
तराजू के पडले की तौल सा मुस्कराना भी जानती है,
कि…
गहरी पीर में कितना, और मात्र उदासी में कितना
दिखाती है डिज़ाइनर कपड़े महँगे से महँगे, उसी के बीच
बड़ी कुशलता से छुपा जाती है गहरे ज़ख्म लगी,
चिथड़े चिथड़े सिली ज़िन्दगी ,
और…
सबसे , बड़ी बात,
जानती है वो, पहचानती है और मानती भी है ,
जीना और ज़िंदा रहने वाली, साँसों का, वज़न भी
फ़िर,
उनके उतार चढ़ाव को बेहद साफ़गोई से समझती है
उसका नीचट.... हुनर भी...
वो औरत ,
जो मुझे बेहद पसंद है …
प्रज्ञा शालिनी