कैसी बेबसी है मेरी के में उससे बात नही कर सकता।
उसपर हक है मेरा मगर,में उसे आवाज तक लगा नहीं सकता।
इंतजार ही है हाथो की लकीरों मैं मेरे,में ये लकीरें बदल नही सकता।
बहुत कुछ उससे कहना होता है मगर
में कहकर भी उसे कुछ कह नहीं सकता।
उसे नही मालूम मेरे दिल का हाल,में एक पल भी उसके रह नही सकता।
बेजान सा लगता है मुझे ये सारा जहां,में बगैर उसके जी भी तो नही सकता।

-गुमनाम शायर

English Poem by गुमनाम शायर : 111923933

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