ज़ख़्म-ए-दिल को लफ़्ज़ों का लिबास पहनाया है,
हर मुस्कान में इक दर्द छुपाया है।
ना-उमीदी की शामों में भी उम्मीद रखी है,
मैंने तन्हाइयों को अपना ख़ुदा बनाया है।
शिकायतें नहीं करती, बस ख़ामोशी से सहती हूँ,
जो टूट भी जाऊँ, तो भी लबों पे दुआ रखती हूँ।
कभी अक्स में भी अपना अक्स नहीं देखती,
मैं वो लड़की हूँ जो हर दर्द में फ़रिश्ता बनके रहती हूँ।