दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*श्रम, नासूर, आतंकी,श्रमिक, मजदूर, पसीना, रोटी*
सेना की *श्रम* साधना, अब लाई है रंग।
ऐसा मारा रह गया, पाकिस्तानी दंग।।
पहलगाम के घाव ने, दिया उसे *नासूर*।
कभी भुला न पाएगा, देखे दुनिया घूर।।
सेना ने बदला लिया, *आतंकी* हैरान।
नहीं सुरक्षा कवच अब, बदला हिंदुस्तान।।
मानव बनता *श्रमिक* है, श्रम साधन ही साध्य।
कर्म करें मिलकर सभी, यही जगत आराध्य।।
अपने-अपने क्षेत्र में, हम सब हैं *मजदूर*।
श्रम की होती साधना, देश बने मशहूर।।
बहा *पसीना* श्रमिक का, भारत है खुशहाल।
अर्थ व्यवस्था पाँचवीं, बनी हमारी ढाल।।
*रोटी* से हर पेट का, रिश्ता बड़ा अजीब।
चाहे साहूकार हो, या हो निरा-गरीब।।
मनोज कुमार शुक्ल "मनोज"