The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
Hey, I am on Matrubharti!
गौ माता को नमन ********** हे गौमाता तुम्हें नमन करता हूँ शीष झुकाकर अभिनंदन करता हूँ। हे मैय्या हम सब उदंड होते जा रहे हैं तेरी उपेक्षा भी अब तो हम कर रहे हैं, हम अबोध अज्ञानी है ये भी नहीं कह रहे हैं हम बड़े बुद्धिमान समझदार है तूझको बता रहे हैं। तेरी महिमा सेवा का ज्ञान भी हमको है पर हम तो आधुनिकता के घोड़े पर सवार हैं, अपने जीवन को अंधेरे में ढकेल रहे हैं तू गौमाता है हमारी ये भी जान रहे हैं। पर दिखावे और आडंबर मे आकर तुझसे दूर हो रहे हैं जन्मदायिनी माँ की तरह तेरी भी उपेक्षा कर रहे हैं, अपनी राह में अब हम ही कांटे बिछा रहे हैं यह जानते हुए भी तुझे अपनी डेहरी से दूर कर रहे हैं, सब कुछ जानते हुए भी कि हम क्या कर रहे हैं? फिर भी तुझसे नजरें फेरकर आगे बढ़ रहे हैं। गौमाता तेरी महत्ता को हम रोज ठोकर मार रहे हैं आधुनिकता के रंग में हर पल हम रंगे जा रहे हैं। हे गौमाता हम तुझे औपचारिकता वश नमन कर रहे हैं। तुझे दूर से ही माता का सम्मान देकर हम खुश हो रहे हैं। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा, उ.प्र. ©मौलिक स्वरचित
राम दर्शन की लालसा ****************** राम जी को राम राम राम जी को प्रणाम। नमन करूँ अयोध्या भूमि को जहां राम जी का जन्म स्थान । मंद मंद बहती सरयू की धारा, निखरे ललित ललाम, जन जन के आराध्य राम हैं, और हमारे प्राण हैं राम। बुद्धि हीन कुछ लोग धरा पर हैं उनके लिए काल्पनिक राम। खेल समय का आप देखिए उन्हें भी आज प्रिय हैं राम। कल तक जिनको रहे नकारते आज उन्हीं के पड़े पायते। रामभक्तों के संघर्षों का जी भरकर अपमान किया। उतने से जी नहीं भरा तब दमन चक्र भी खूब चलाया, आज बन रहा राम का मंदिर तब भी उनको शर्म न आई। मंदिर मंदिर दौड़ रहे अब रटते राम-हनुमान हैं भाई। आयें अयोध्या राम शरण में उनका जैसे सौभाग्य नहीं है। लगता है सिर्फ वोट की खातिर, उनके लिये अभी भी हैं राम। रोज रोज हैं भेष बदलते, तिलक लगा जनेऊ धारते, टोपी लगा इफ्तार हैं करते। बेशर्मी ऐसी है उनकी, अपना धर्म तक नहीं जानते, अमर अजर हैं हमारे राम। क्या वो अब भी नहीं समझते। अच्छा है वो बेवकूफ रहें, राम जी को परवाह नहीं है, उन जैसों से चरण वंदना करवाना शायद राम जी को भी मंजूर नहीं है। पर पता चल गया हमें आज मन में उनके क्या द्वंद्व चल रहा, शर्मिंदगी का प्रतिफल है ये राम जी का उन्हें आदेश नहीं हैं। मचल रहे हैं वे सब सारे जितने भी रामविरोधी हैं, दर्शन के वो खुद ही लालयित हैं चाहते राम की अनुमति हैं, हे राम, कृपा करो उन मूढ़ों पर, अपनी शरण में आने दो, ले लो अपनी शरण में, उनके बंद चक्षु खुल जाने दो। राम की महिमा जो नहीं जानते, उनको भी समझ में आने दो, हे दयानिधान, हे कृपानिधान सबको रामनाम गुन गाने दो। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा, उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
मेरी तोंद और कद्दू ************ मुझे पता है आप सब मुझ पर हंस रहे हैं खूब मजे ले रहे हैं। लीजिए, खूब लीजिये शर्म लिहाज तो कुछ है नहीं जो मेरी तोंद तो देख रहे हैं मगर मेरे सिर पर जो कद्दू है दस पंद्रह किलो से कम नहीं है वो मेरे ही खेत की उपज है मेरे श्रम का परिणाम है। मैं खुश हूं अपने आप से ईश्वर का वरदान है मुझ पर और मेरे श्रम पर हे ईश्वर तेरी निगाह है, मेरे खेत की पैदावार और मेरी तोंद के विकास में तेरी कृपा का ही प्रताप है। हे प्रभु मुझ पर अपनी कृपा ऐसे ही बनाए रखना, जो मुझसे कर रहे हैं ईर्ष्या उनका भी कल्याण करना, पर मुझसे और मेरे खेत से उन सबको दूर ही रखो। नजर कहीं न लग जाए उनकी मेरी तोंद और मेरे कद्दू को इन सबसे जरा बचाए रखो। मेरी तोंद जैसी भी है ठीक ठाक है बस मेरे कद्दू का स्वास्थ्य सदा यूं ही सेहतमंद और बलवान रखो। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा, उत्तर प्रदेश ©मौलिक स्वरचित
जीवन ******* जीवन क्या है? महज मिट्टी है मात्र मुट्ठी भर जिसे ईश्वर ने सजाया, संवारा पंंचत्तवों से, सांस, प्राण भरकर ईश्वर के दूत , हलवाह हैं हम इस धरती पर पालन कर रहे हैं उसके निर्देशों का उसके एक इशारे पर हम सब नाच रहे हैं। अपना कुछ भी नहीं है ये जीवन भी नहीं फिर भी बड़ा गुमान कर रहे हैं अपने धन दौलत, पद, कद पर ये जानते हुए भी कि हम खेल रहे हैं। अदृश्य सत्ता के इशारे पर, स्वयं तो हम कुछ भी नहीं हैं फिर भी हम ये समझना नहीं चाहते कि ये जीवन महज बुलबुला है हवा के गोले का जो कभी भी फूट सकता है और जीवन हमेशा के लिये विराम ले सकता है फिर हमेशा के लिए अनाम हो जाएगा जीवन का अगला पल हमें दुनिया से दूर कर सकता है क्योंकि जीवन नश्वर है जिसे नष्ट होकर मिट्टी में ही मिल जाना है जीवन जीवन कहां महज खिलौना है जिसे टूटना बिखरना और नष्ट हो जाना है मगर यह कोई नहीं जानता है सिवाय ईश्वर के जिसने हमें जीवन देकर भेजा है इस धरती पर हमें गढ़कर मां की कोख के माध्यम से अपना दूत बना जीवन में प्राण भरकर। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा, उत्तर प्रदेश ©मौलिक स्वरचित
अनमोल प्रेम ************ जीवन में बस प्रेम ही अनमोल है बाकी सब की कीमत कुछ न कुछ जरूर है। प्रेम की कोई सीमा नहीं है प्रेम का कोई दायरा, कोई परिधि नहीं होती। दुनिया के हर रिश्ते में प्रेम होता है मां बाप का संतान से भाई का बहन से, बहन का भाई से दादा, दादी, नाना, नानी का अपने नाती नातिनों, पोते, पोतियों से चाचा चाची,बुआ, फूफा,मामा मामी का प्रेम भी अनमोल ही तो होता है, अपनों का अपनों से ही होता है अनमोल प्रेम। प्रेम खून के रिश्तों में या प्रेमी प्रेमिकाओं में ही नहीं होता, भावनात्मक और आत्मीय रिश्तों में भी होता है निश्छल, निर्मल अनमोल प्रेम जो वास्तविक रिश्तों को भी मात दे जाते हैं, अनमोल प्रेम की नई दास्तां संग इतिहास लिख जाते हैं। आज जब खून के रिश्ते भी बेपरवाह होते जा रहे हैं अनमोल प्रेम की बदसूरत तस्वीरें बना रहे हैं। तब भावनाओं और मानवीय रिश्ते अनमोल प्रेम की नई गाथा रच रहे हैं अनमोल प्रेम को शर्मसार होने से बचा रहे हैं अनमोल प्रेम को अमरता प्रदान कर इतिहास रच रहे हैं अनमोल प्रेम का महत्व समझा रहे हैं। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
पर्यावरण और हमारे पुरखे ----------------------------------- घटते जल जंगल जमीन सिकुड़ते नदी नाले अस्तित्व खोती तलैया पेड़ पौधों की घटती संख्या, मिटती हरियाली कंक्रीट के जंगलों का बढ़ता कारवां कल कारखानों की संख्या में अप्रत्याशित बृद्धि धरती की कोख पर बढ़ते घाव जलदोहन का खतरनाक जूनून आधुनिकता, विकास और निहित स्वार्थवश विकास यात्रा का हमारा दंभ खतरा बन रहा है। हमारे लिए ही नहीं हर प्राणी मानव अस्तित्व के लिए भी और हम आत्ममुग्धता में मगन हैं। बिगड़ता प्राकृतिक संतुलन बेतरतीब हो रहा मौसम अप्रत्याशित बेमौसम बाढ़, सूखा भूस्खलन, भूकंप बादल फटने की बढ़ती घटनाएं नई नई बीमारियां, अप्रत्याशित अप्राकृतिक घटनाएं हमें कब से सचेत कर हमसे कुछ कह रही हैं और हम आंख कान बंद किए हवा में उड़ रहे हैं, जैसे कुछ समझना नहीं चाह रहे हैं या लापरवाह हो गए हैं। जो भी हो पर्यावरण के साथ ये दुर्व्यवहार नहीं चलेगा, पर्यावरण का सम्मान करना फिर से सीखना होगा। हमारे पुरखे बेवकूफ तो नहीं थे जो खुद को प्रकृति से जुड़कर चलते थे जल, जंगल जमीन का सम्मान ही नहीं करते थे पूजा पाठ के साथ संरक्षण भी करते थे तब वे लंबी उम्र तक जीते भी थे गंभीर बीमारियों तक का इलाज प्रकृति में ही पा लेते थे हमसे ज्यादा खुश ही नहीं स्वस्थ भी रहते थे, क्योंकि वे हमारी तरह स्वार्थी नहीं थे पर्यावरण से घुल मिलकर रहते थे पर्यावरण के बड़े संरक्षक, समर्थक और पुरोधा थे अनपढ़ ही सही, हमसे आपसे ज्यादा बुद्धिमान थे। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
आतंकवाद ********** समाज और देश दुनिया के लिए आज आतंकवाद नासूर बन गया है, संमूची दुनिया के लिए एक पहेली जैसा हो गया है। जितना इससे बचने का प्रयास हो रहा है आतंकवाद नित नये रुप में अवतरित होता है, अधिसंख्य दुनिया इससे हैरान परेशान हैं जन धन का नुक़सान सह रही है अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इसकी भेंट चढ़ रहा है अनेक देशों का सुख चैन दिवास्वप्न सा हो गया है आज आतंकवाद वैश्विक समस्या बन गई है राष्ट्र ही नहीं समाज में भी दरार डाल रही है। समूची दुनिया को मिलकर इससे लड़ने की जरूरत है आतंकवाद के समूलनाश के लिए मनभेद मतभेद मिटाकर सबको साथ आने की जरूरत है तभी आतंकवाद से छुटकारा मिल सकता है और धरा से आतंकवाद मिट सकता है, शांति का नया वातावरण बन सकता है। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
अपनी सुरक्षा खुद करो ******************* समय के साथ चलना सीखो अपनी सुरक्षा खुद से करना सीखो, औरों के भरोसे रहकर सुरक्षित रह सकोगे कब तक? इस बात का भी विचार करना सीखो। अब तक जिन्होंने ने भी इतिहास रचा है अधिसंख्य वे बेबस लाचार कमजोर,निर्धन ही तो थे, पर उन्होंने अपनी जिजीविषा से खुद को मजबूत किया, औरों की ओर नहीं निहारा और चल पड़े एकला अपने लक्ष्य की ओर न अकेलेपन की डर, न संसाधनों की चिंता पर मन में थी बस हिमालय सी दृढ़ता और सफलता का नया इतिहास रच खुद को अमर कर डाला। तभी तो आज सैकड़ों हजारों साल बाद भी हम याद करते, पूजते हैं उन्हें, उनके पद चिन्हों का अनुसरण करो जो उन्होंने दिया हमें कम से कम उसी का सम्मान करो। समय बदल रहा है दुनिया कहां से कहां जा रही है हमारी छुई मुई सी बहन बेटियां खुद से फौलाद बन झंडे गाड़ रही हैं अपनी ओर उठने वाली बुरी नजरों की आंखों में आंखें डालकर टकराने लगी हैं हमारे आपके लिए भी वे नजीर बन रही हैं। अपनी सुरक्षा के लिए खुद से कमर कस रही हैं। क्योंकि आज की यही ज़रुरत है हमारे,आपके लिए ही नहीं हम सबके लिए यह जरूरी है इसके लिए हमें अपने आत्मबल की जरूरत है अपनी सुरक्षा अपने आप से करना हमें सबसे जरूरी है। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
लू का प्रकोप ************* आग उगलता सूर्य का रौद्र रूप जलती तपती गर्मी की प्रचंड आक्रोश झुलस रहे जनमन, पशु पक्षी, जीव जन्तु, पेड़ पौधे तपती,झुलसती धरती कराह रही है सुख रहे ताल तलैया जल स्तर नित नीचे जा रहा है। सब व्याकुल, बेचैन हैं पेड़ पौधों का आसरा है गांव गरीब को शहरों में बिजली के भरोसे ही पंखे, कूलर, ए.सी. में दिन कटते हैं। पर बेबस लाचार है गरीब, मजदूर, रिक्शे ठेले वाले अपने और अपने परिवार के पेट कीआग बुझाने के जुगाड़ में झुलस रहे तपती जलती धूप में विवशतावश दो दो हाथ कर रहे। अंगार बनी लू के थपेड़े सह रहे हैं जीवन से जैसे युद्ध कर रहे हैं। इस लू से बचाव ही उत्तम उपाय है बेवजह धूप में मटरगस्ती जान लेवा साबित हो सकती है। बाहर की खुली चींजे खाने से बचिए कभी भी धूप से छाया में आने पर जरा कुछ देर शांत रहिए फिर ठंडा जल, ठंडा पेय, आम का पना बेल का शर्बत या कोई अन्य ठंडा पेय पीजिए। छाछ या लस्सी लीजिए मगर बर्फ़ से परहेज़ ही कीजिए कोल्डड्रिंक से तो दूर ही रहिए। प्याज का सेवन जरूर कीजिए। खरबूजा , तरबूज ककड़ी का सेवन खूब कीजिए हल्का, सादा भोजन लीजिए,पानी खूब पीजिए लू के दुष्प्रभाव से जितना बच सकते हैं खुद के साथ परिवार को भी बचाने का आप इंतजाम कीजिए। बच्चों और बुजुर्गो को धूप के ताप से बचाइए शान्त रहकर तपती गर्मी और लू के थपेड़ों से सब दो दो हाथ कीजिए और इसके जाने का इंतजार कीजिए सूर्य देव से शान्त रहने का अनुरोध कीजिए। लू का प्रकोप जब तक सिर चढ़कर बोल रहा है आप सब स्वयं ही ज्यादा से ज्यादा शान्त, संयम और सहजता से रहिए लू के प्रकोप मिटने का इंतजार करिए। लू के प्रकोप, तपती गर्मी और आग उगलती धूप से हर प्राणी, जीव जन्तु, पशु पक्षी, पेड़ पौधे, और अपनी ये धरा सुरक्षित रहे, इसके लिए अपने अपने इष्ट, आराध्य से प्रार्थना, याचना, अरदास करिए, ईश्वर की कृपा बनी रहे आप सब ही लूं के प्रकोप से बचिए। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
बुजुर्गो की सेवा का पुण्य ********************* जीवन में कुछ कीजिए या न कीजिए ये आपकी मनमर्जी है, मगर बुजुर्गों की सेवा सत्कार सम्मान खूब कीजिए। बुजुर्गो के साथ अपनी मनमानी या उनकी उपेक्षा मत कीजिए। बुजुर्गो की सेवा का लाभ लीजिए जीवन में असीम पुण्य अर्जित कीजिए। दुनिया भर के पूजा पाठ भजन कीर्तन तीर्थाटन से जो नहीं मिल सकता उसे बुजुर्गों की सेवा से मुफ्त में पा लीजिए। हमारे बुजुर्गों में ईश्वर बसता है इसलिए बुजुर्गों की सेवा कर ईश्वर कृपा प्राप्त कर लीजिए, बुजुर्गो को खुशियां देकर अपने लिए ढेरों पुण्य अर्जित कर लीजिए, अपना अपना जीवन संवार लीजिए, बुजुर्गों की सेवा का प्रण कर लीजिए अपना अपना जीवन धन्य कर लीजिए। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश © मौलिक स्वरचित
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Download App
Get a link to download app
Copyright © 2023, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Please enable javascript on your browser