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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
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कान्हा संग स्वतंत्रता दिवस
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कृष्ण जन्माष्टमी के साथ ही
स्वतंत्रता दिवस की उमंग है
देश विदेश में कृष्ण जन्म का उल्लास
और अपने देश में स्वतंत्रता की बहती बयार है।
जन्माष्टमी के रंग में रंगे हुए हैं लोग
आजादी के दिवस संग आया है संयोग।
गीता के उपदेश से जन-मन को मिलता ज्ञान
और तिरंगा देश का बढ़ा रहा है शान।
हम सब भी द्वय पर्व का करें खूब सम्मान
करें न कुछ ऐसा कोई इस दिवस का हो अपमान।
खुशियों के संग में सब मिल करें तिरंगा मान
श्रीकृष्ण के जन्म पर नाचें, गाएं गान।
यह हमारा धर्म है आप सभी ले जान
देश को भी मान संग करें कृष्ण गुणगान।

सुधीर श्रीवास्तव

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हृदय विदारक घटना- 02 अगस्त' 2025 को गोण्डा में एक बोलोरो गाड़ी के नहर में गिरने से गाड़ी में सवार 15 लोगों में 11 की दर्दनाक मौत पर श्रद्धा सुमन
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काल का जाल
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कौन जानता था
कि भोलेनाथ के दर्शन की योजना अनायास नहीं थी,
और न ही उनकी ओर से कोई आमंत्रण।
वास्तव में ये सब थी काल की माया
जिसने अपना जाल फैलाया
सावन और भोलेनाथ की आड़ में
एक नहीं दो-दो परिवारों को भरमाया।
बस यहीं पर खेल हो गया,
यात्रा में उन सबके साथ काल भी
गाड़ी में सवार हो गया,
समय का इंतजार किया
और अपनी सुविधा से चाल चल गया,
ग्यारह लोगों को बिना डकार खा गया
और हाथ छाड़ पाक साफ निकल गया।
किसे फुर्सत थी उसे दोष देने की
और देकर होता भी क्या?
जब उसने जाल ही ऐसा बुना
कि वाहन अनियंत्रित हो नहर में गिर गया
गिर क्या गया उसने गिरा दिया,
आस्तीन का सांँप ग्यारह जीवन डस गया,
जिसने भी सुना हतप्रभ हो गया।
मानवता का ज्वार आया
पर काल से पार न पा सका,
बेशर्म काल भी अपने कुकृत्य से
तब भी शर्मिंदा न हुआ,
दूर खड़ा तमाशा देखता रहा
और फिर जाने कहांँ खो गया।
अब इसे विधि का विधान कहें
या महज एक दुर्घटना अथवा कुछ और
पर जाने वाले तो चले गए
अपनों को कभी न भूलने वाले जख्म देकर।
ईश्वर उन सबको शाँति दें
बच गये चार लोगों सहित उन परिवारों, शुभचिंतकों
इष्ट मित्रों, रिश्तेदारो को असीम सहन शक्ति।
वैसे तो उस मंजर को भुला पाना आसान भी तो नहीं,
पर शेष जीवन भी जीना है
रोते सिसकते, काल के गाल में समा गये
अपनों को याद करके
उस घटना की यादों के मकड़जाल से
बचने की कोशिश करते हुए।
क्योंकि यही तो जीवन है
जिस पर किसी का वश नहीं चलता,
जैसे भी हो जब तक साँसें चलती हैं
तब तक तो हर प्राणी को जीना ही पड़ता है
काल का भी तब तक कोई तंत्र मंत्र कहाँ चल पाता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा- कहें सुधीर कविराय
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गुरु पूर्णिमा विशेष
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गुरु पूजन का है दिवस , अवसर आया खास।
सबके मन में भावना, और अटल विश्वास।।

रहे हाथ गुरुदेव का, मेरे सिर पर नित्य।
कवि सुधीर जिससे रचे, जग में शुभ साहित्य।।

गुरु शिक्षा भंडार हैं, सदा सहेजो आप।
जीवन में होगा नहीं, कभी आप से पाप।।

ज्ञानी जन को है पता, गुरुजन का क्या मोल।
करें नहीं सज्जन कभी, मर्यादा का तोल।।

सतगुरु से यदि आस है, तो रखिए विश्वास।
संत जनों का है यही, सूत्र सदा ही खास।।
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धार्मिक
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चित्र गुप्त जी कीजिए, जन मन का उद्धार।
भव बाधा से मुक्त हो, सुखी रहे संसार।।

शनी देव के नाम का, व्यापक ब्रह्म प्रभाव।
शीश झुका शिव धाम में, शेष नहीं अब घाव।।

मर्यादा श्री राम की, भूल रहा संसार।
आज स्वयं को मानता, जगती का आधार।।

बजरंगी अब आप ही, करें जगत कल्याण।
या कहिए प्रभु राम से, हरें दुष्ट के प्राण।।

प्रातः उठ वंदन करें, ईश वंदना साथ।
सतत कर्म की साधना, ऊँचा हो तव माथ।।

गणपति बुद्धि विवेक का,भरो आप भंडार। करिए बस इतनी कृपा, सुखी रहे संसार।।
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बाबा तुलसीदास
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पिता आतमा राम थे, हुलसी जिसकी मात।
उनसे गोण्डा को मिला, है सुधीर सौगात।।

सरयू के उस पार है, तुलसी की ससुराल।
माँ हुलसी का मायका, कचनापुर है भाल।।

अवधी में मानस लिखा, किया श्रेष्ठ शुभ काम।
अमर बने तुलसी तभी, हुआ विश्व में नाम ll

गुरु नरहरि के शिष्य थे, बाबा तुलसीदास।
लिखकर मानस ग्रंथ को, जगा दिया विश्वास।।

पसका सूकरखेत में, गुरु नरहरि का धाम।
गोण्डा से कुछ दूर पर, चर्चित है यह नाम।।

नरहरि जी से था सुना, राम नाम का सार।
सूकर-भू में था मिला, तुलसी को आधार।।

जन्म भूमि गोण्डा रही, या बाँदा को मान l
रामचरित जिसने लिखा, कर सुधीर सम्मान।।
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यमराज
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सुबह मित्र कहने लगा, चलो आप यमलोक।
फैला रहता इन दिनों, वहाँ बहुत ही शोक।।

तेरी इच्छा के लिए, चलता हूँ यमलोक।
तू तो मेरा मित्र है, कैसे सकता रोक।।

तेरी खुशियों के लिए, कुछ भी करूँगा यार।
तेरे बिन इस जगत का, शेष और क्या सार।।
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नालंदा
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नालंदा का विश्व में, बड़ा था ऊँचा नाम।
मोदी जी के राज में, मिला नया आयाम।।

विश्व पटल पर फिर हुआ, नालंदा का नाम।
दूर दृष्टि से देखिए, नव शिक्षण का धाम।।

नालंदा के नाम पर, झुक जाते थे शीश।
शिक्षा के इस धाम से, निकले जो वागीश।।

शिक्षा का मंदिर बड़ा, नाम हुआ मशहूर।
नालंदा तीरथ रहा, दिया ज्ञान भरपूर।।
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आकाश
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अपना नीला आकाश है, देता है संदेश।
एका में रहिए सभी, चाहे जो हो वेश।।

आकाश मार्ग से ले गया, रावण सीता मात।
गीधराज बोले प्रभो, सुनिए मेरी बात।।

पिता मेरे आकाश हैं, मात धरा समान।
इन दोनों के बिना हम, सब होते अंजान।।

धरा और आकाश का, कभी न होता मेल।
पर दोनों के बीच में, होते जग के खेल।।

दंभी को लगता सदा, छोटा है आकाश।
उसके बिन अस्तित्व के, होंगे सभी निराश।।
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विविध
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अपना होता कौन है, समय संग हो ज्ञान।
भला कौन है जानता, मानव रचित विधान।।

कौन किसे क्या दे रहा, क्या है उसके पास।
बस केवल उम्मीद का, दिए तोहफा खास।।

टूट रहा विश्वास का, रिश्ते जितने खास।
दुखी करे सबसे अधिक, जो जितना है पास।।

आजादी कैसे मिली, यह भी रखिए ज्ञान।
तभी आपको देश पर, गर्व और सम्मान।।

उत्कंठा तो ठीक है, उचित नहीं अतिवाद।
बिन पानी बेकार सब, कितना दोगे खाद।।

अपने सारे लोग जब, नजर फेरते आज।
समझ मुझे तब आ गया, स्वार्थ सिद्ध का काज।।

वीरानी छाई हुई, मुखमंडल पर आज।
कितना बिगड़ा इन दिनों, अपना मित्र समाज।।

धर्म जाति के नाम पर, होता है बहु खेल।
याराना दम तोड़ता, होती ठेलम-ठेल।।

नादानी में हो रहे, बच्चे अब बर्बाद।
भ्रम में इतने मस्त हैं, नहीं रहा कुछ याद।।

चालाकी का इन दिनों, नित्य नया अवतार।
भेष बदलकर देखिए, सभी बने सरकार।।
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आशंका
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आशंका के बीच में, झूल झूलेंलोग।
तेजी से फूले- फले, कैसा है ये रोग।।

आशंका को छोड़िए, सोचो प्यारे आज।
प्रेम भावना संग में, गंदा तेरो राज।।

आशंकाएं दे रही, तीखे- तीखे दर्द।
रोता कुंठा से घिरा, लाचारी से मर्द।।

मन उदास है इन दिनों, जाने क्या है राज।
मुश्किल सबसे है बड़ी, बाधित है सब काज।

आप देखते क्यों नहीं, प्रभु जी जग का हाल।
मानव फँसता जा रहा, बुने स्वयं जो जाल।।

बेबस अरु लाचार वो, जिसे समझते आप।
अच्छे से उसको पता, क्या है उसका पाप।।

जाने कैसा हो रहा, मानव मन का मीत।
अपने ही दुश्मन बने, गाए ऐसे गीत।।

मीठी वाणी बोलते , पाते वो सम्मान।
पीछे कोई है नहीं, छुपा हुआ विज्ञान।।

मर्यादा जो तोड़ते, होते हैं लाचार।
उन्हें कहाँ आता भला, क्या आचार विचार।।

संतों की वाणी बड़ी, होती ज्ञान की खान।
मानो जैसे देव हैं, या पाषाण समान।।

दंभी लोभी लोग जो, वे होते बेभाव।
पाते हैं वे सभी से, करनी जैसे घाव।।

कहते हैं यमराज जी, यह कैसा परिवार।
सबको मिलता है जहाँ, इक दूजे का प्यार।।

आखिर इतने दंभ में, क्यों रहते हैं आप।
चोरी की क्या आपने, या फिर ईर्ष्या पाप।।

कुंठा से तो आपका, होता है नुकसान।
नादानी के फेर में, मिटा रहे निज मान।।

व्यर्थ नसीहत आपका, जिसको मिले न भाव।
आप चाहते हो भला, हिस्से आता घाव।।

कुछ लोगों को आजकल, ऐसा चढ़ा सुरूर।
मान और सम्मान से, भाग रहे हैं दूर।।

इज्जत देकर व्यर्थ में, होता है नुकसान।
बदनामी के संग में, मुफ्त सहो अपमान।।

रंग बिरंगे भेड़िए, घूम रहे चहुँओर।
पीड़ा जितनी दे रहे, उतना करते शोर।।

मान आपको मिल रहा, यही है उनकी पीर।
ईर्ष्या जिसकी संगिनी, वही बहाते नीर।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य - आशीर्वाद शिव का
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सुबह-सुबह मित्र यमराज जी आये
और बड़े प्यार से कहने लगे-
प्रभु! मेरा अनुरोध स्वीकार कीजिए
बस छोटा सा मेरा काम कर दीजिए।
मैंने कहा - तुझे ऐसा लगता है
कि मैं तेरे काम के लायक हूँ,
तेरी नज़र में आज मैं ही जननायक हूँ
तो कहो मित्र! क्या कर सकता हूँ।
यमराज अकड़ कर बोला -
वाह हहहहहहह! खुद को जननायक समझते हो
शिव जी का आशीर्वाद बँट रहा है
और तुम अभी तक बिस्तर पर पड़े हो,
कुछ तो शर्म करो और बिस्तर छोड़ो
नहा धोकर जल्दी से मेरे साथ चलो,
शिव जी के आस-पास भारी भीड़ है।
सब शिव जी का आशीर्वाद पाना चाहते हैं,
इसके लिए धक्का मुक्की से भी
तनिक परहेज़ भी नहीं कर रहे हैं।
बस अपने जुगाड़ से मुझे शिव जी के पास पहुँचा दो,
लगे हाथ छोटा सा एक काम और कर दो,
अपने लिए न सही मेरे लिए
थोक में उनका आशीर्वाद दिला दो।
इतने भर से हम दोनों का कल्याण हो जायेगा,
मेरी आड़ में आपको भी थोड़ा-बहुत
आशीर्वाद मुफ्त में मिल ही जायेगा।
इतने भर से हम दोनों का कल्याण हो जायेगा
जब शिव जी का आशीर्वाद
किसी भी तरह हमें मिल जायेगा,
हमारी यारी को नया आयाम मिल जाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य व्यंंग्य - मृत्यु प्रमाण पत्र
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अभी अभी मित्र यमराज का आगमन हुआ
हमेशा की तरह मैंने उनका स्वागत सत्कार किया,
किया क्या करना ही पड़ता है
क्योंकि वो ही तो मेरा सबसे प्यारा यार,
शुभचिंतक, सलाहकार, आलोचक है,
यह और बात है कि आपके लिए खौफ का नाम है।
पर आप सब मुझे पर विश्वास कीजिए
उससे अच्छा मेरा कोई यार नहीं है।
जो सबसे सम व्यवहार करता है,
जीवन के अंत में ही सही
हर किसी से एक बार जरूर मिलता है,
हर सुख-दुख, लोभ-मोह, माया-तृष्णा से दूर ले जाता है
ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-धर्म नहीं देखता है,
सबको एक ही तराजू में तौला है
किसी की धौंस में नहीं आता,
किसी की फरियाद भी नहीं सुनता
अपना कर्त्तव्य पूरी ईमानदारी से करता है।
आज उसने मुझसे एक सवाल क्या किया
मेरा तो दिमाग ही हिल गया,
बड़ा घमंड था मुझे, इतने सम्मान पत्र जो पा गया
और रोज रोज एकाध मिलता ही जा रहा है,
पर एक निश्चित प्रमाण पत्र नहीं है हम सबके पास,
जो सबको मिलना निश्चित है।
बस! यही बात मित्र यमराज कह रहा था
कह क्या पूछ कम धमका ज्यादा रहा था,
किस बात का घमंड कर रहे हो मित्र
बेवजह दंभ में बदरंग चित्र खींच रहे हो
बड़े-बड़े पत्र, सम्मान पत्र का रोब झाड़ रहे हो
क्या मृत्यु प्रमाण पत्र के बाद भी कोई ख्वाब देख रहे हो?
अथवा खुद को बड़ा विशेष समझ रहे हो?
अरे बेवकूफ! मृत्यु प्रमाण पत्र ही तो है
जो हर किसी के नसीब में है,
फिर भला तू ही बता कौन अमीर या गरीब है,
जब सब ही इसके करीब हैं,
यानी सबको ही मिलना है।
यही तो है जिस पर किसी का नहीं
या फिर सभी का कापीराइट है,
जिसके लिए कोई करता नहीं फाइट है
क्योंकि इसकी व्यवस्था एकदम टाइट है
इस एक अदद प्रमाण पत्र की सबसे ऊँची हाइट है
अब बता मेरे यार क्या प्रेस कांफ्रेंस के लिए
आपके पास इससे भी कोई खास बाइट है?

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहे- बाबा तुलसीदास
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पिता आतमा राम थे, हुलसी जिसकी मात।
उनसे गोण्डा को मिला, है सुधीर सौगात।।

सरयू के उस पार है, तुलसी की ससुराल।
माँ हुलसी का मायका, कचनापुर है भाल।।

अवधी में मानस लिखा, किया श्रेष्ठ शुभ काम।
अमर बने तुलसी तभी, हुआ विश्व में नाम ll

गुरु नरहरि के शिष्य थे, बाबा तुलसीदास।
लिखकर मानस ग्रंथ को, जगा दिया विश्वास।।

पसका सूकरखेत में, गुरु नरहरि का धाम।
गोण्डा से कुछ दूर पर, चर्चित है यह नाम।।

नरहरि जी से था सुना, राम नाम का सार।
सूकर-भू में था मिला, तुलसी को आधार।।

जन्म भूमि गोण्डा रही, या बांदा को मान l
रामचरित जिसने लिखा, कर सुधीर सम्मान।।

सुधीर श्रीवास्तव

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सावन आया
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सावन आया, सावन आया
यह हम आप सब कह रहे हैं,
पर सावन के आगमन का
वास्तविक अनुभव नहीं कर पा रहे हैं।
कहाँ भिगोती हैं अब वो मन भिगोती सावनी फुहारें
कहाँ दिखते हैं अब बागों, पेड़ों पर पड़े
घर, घर द्वारे द्वारे पड़े झूले,
कहाँ दिख रही है अब बहन बेटियों में
मायके आने की वो पहले जैसी उत्कंठा
या मायके वालों में बहन बेटियों के
आगमन की पहले वाली प्रतीक्षा,
अथवा हमजोली सखियों से मिलने की उद्गिनता
कहाँ दिखती है आपस की वो हँसी ठिठोलियाँ।
सब कुछ आधुनिकता की भेंट चढ़ता जा रहा है,
तकनीकी युग और व्यस्तताओं की आड़ में
सावन का भी वास्तविक आनंद खो रहा है,
समय के साथ हमसे हमारा आत्मसंतोष भी
अब कोसों- कोसों दूर भाग रहा है।
हर तीज त्योहार की तरह सावन भी अब
औपचारिकताओं की भेंट चढ़ता जा रहा है,
हमें आपको ही नहीं हमारी संवेदनाओं को
नव आइना दिखाने का उपक्रम कर रहा है।
सावन आया, सावन आया! यह तो मैं भी कह रहा हूँ
पर कितना आनंद हम महसूस कर पा रहे हैं,
ईमानदारी से कहने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे हैं,
तीज त्योहार कब आये और बीत गए पता ही नहीं चलते
सावन की पीड़ा के स्वर भी हम अनदेखा कर रहे,
पर सावन आया, सावन आया, बड़ा खुश हो रहे हैं
औपचारिकताओं की अठखेलियों की आड़ में
अपने आपको ही नहीं सावन को भी भरमा रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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आधार कार्ड निष्क्रिय
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जीवन में भले ही हमें आपको
कुछ और मिले न मिले,
पर मृत्यु से साक्षात्कार जरुर होगा,
आप भले ही कैसे हों, कैसा भी सोचते हों
या फिर व्यवहार करते हों।
उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
उसे आना ही है, जो कि उसका ही प्रस्ताव है,
जिसे वो कभी भी नहीं वापस लेता
हम चाहें भी तो, वो हमें अवसर तक नहीं देता।
क्योंकि वो ऐसा ही है
अपने दामन पर दाग जो पसंद ही नहीं करता,
अपने मान- सम्मान, पसंद नापसंद से
एक निश्चित फासला बना कर रखता।
तभी तो अपने नैतिक कर्तव्य का पालन
पूरी ईमानदारी से कर पाता है,
हर किसी से रिश्ता जोड़ लेता है
जीवन का अंतिम मीत बन
अपना फर्ज निभा लेता है।
यह और बात है कि हम आप
कभी प्रसन्नता से उसका इंतजार भी नहीं करते
उसके स्वागत की कोई तैयारी भी नहीं रखते
उसके आने की खुशी का पूर्व में
किसी को निमंत्रण भी नहीं देते।
क्योंकि उसे तो आना ही होता है,
इसीलिए निर्विकार भाव से आ ही जाता है
हमसे यारी गाँठ हमें अपने साथ ले जाता है।
बस उसी पल से हमारा सांसारिक रिश्ता
हमेशा के लिए खत्म हो जाता है,
और हमें मरा घोषित कर दिया जाता है
हमारा आधार कार्ड निष्क्रिय मान लिया जाता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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जीवन अवसान की ओर
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यह विडम्बना है या हमारी सोच का तरीका
यह जानते हुए भी कि जन्म के साथ ही
हमारी जीवन यात्रा अपनी मंजिल की ओर
सतत बढ़ने लगती है।
हर पल, क्षण, सेकेंड, मिनट, घंटे,
महीने, वर्ष के साथ ही हमारी उम्र
अपने अवसान की ओर बढ़ती रहती है।
और हम बड़े गर्व से कहते हैं
कि हमारी उम्र बढ़ रही है,
इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं
कि वास्तव में हमारी उम्र घट रही है।
शायद हम इसी गुमान में अपनी खुशियाँ खोज रहे हैं,
सच से दो-दो हाथ करते हुए इठलाते हैं।
अच्छा है! यदि आप खुद को भरमाते नहीं
सच का सच में सम्मान करते हैं,
जीने के लिए अपने तरीके का उपयोग करते हैं,
घटती उम्र के बढ़ने का गुरूर नहीं करते हैं
जीवन के हर पल को ईश्वर का उपहार समझते हैं,
ईश्वरीय व्यवस्था में अवरोधक बनने का
प्रयास या दुस्साहस नहीं करते हैं,
अपने ढंग से जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं,
उम्र घट रही है या बढ़ रही है
इसके फेर में नहीं फँसते हैं,
ये मानव जीवन ईश्वर ने जो दिया हमको
इसके लिए हम उनका आभार धन्यवाद करते हैं
बारंबार नमन वंदन करते हैं,
अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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सावन या श्रावण
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श्रावण मास या सावन का महीना
यह माह भगवान शिव की पूजा, आराधना
और उनकी कृपा आशीर्वाद पाने के लिए
सबसे उत्तम माना जाता है।
इस माह के सोमवार की बड़ी महत्ता है,
इस मास के सभी सोमवार को बड़ा महत्व मिलता है,
स्त्री पुरुष सभी भक्तिभाव से यथासंभव
भगवान शिव की पूजा, आराधना, जलाभिषेक,
रुद्राभिषेक और व्रत, अनुष्ठान करते हैं,
भगवान शिव भी उनकी मनोकामनाएं
उनकी श्रद्धा विश्वास और समर्पण के अनुरूप
सदैव पूरी भी करते हैं।
वैसे भी जन- मानस की भी यह मान्यता है
कि श्रावण मास शिव जी को विशेष प्रिय है।
भगवान भोलेनाथ स्वयं ही यह कहते हैं
कि मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है।
इसका माहात्म्य सुनना, समझना, मनन, योग्य है
इसी मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है
जिसका महात्म्य श्रवण मात्र भी सिद्धि प्रदान करता है
इसीलिए इसे श्रावण कहते हैं।
श्रावण मास अपने आप में विशेष है
बदलाव के इस दौर में काँवड यात्राएं भी
नवरुप- रंग बिखेर रही हैं,
भगवान शिव जी के प्रति श्रद्धा विश्वास समर्पण की
एक नई अवधारणा का परचम लहरा रही हैं।
आम जनमानस स्व इच्छा से कांवड़ उठाता है
आज के दौर में अपने भक्तों का ये भाव
भगवान भोलेनाथ को खूब भाता है,
आम हो या खास, स्त्री हो या पुरुष
श्रावण मास का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है
तभी तो श्रावण मास में अभूतपूर्व हर्षोल्लास दिखता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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