नकली व्यक्ति
शहर के बीचों-बीच एक आलीशान कॉलोनी में एक व्यक्ति रहता था — नाम था विवेक अग्रवाल। हर कोई उसे एक आदर्श नागरिक, सफल व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्ता मानता था। उसका पहनावा, उसकी भाषा, उसका व्यवहार — सब कुछ इतना प्रभावशाली था कि कोई भी पहली नजर में उसकी असलियत जान ही नहीं सकता था।
लेकिन अंदर की सच्चाई कुछ और ही थी। विवेक असल में एक नकली व्यक्ति था — न केवल अपने व्यवहार में, बल्कि अपनी पहचान में भी। उसने अपने जीवन की पूरी इमारत झूठ और दिखावे पर खड़ी कर रखी थी।
विवेक का असली नाम था विनोद वर्मा, जो एक छोटे शहर से धोखाधड़ी के कई मामलों में फरार था। उसने प्लास्टिक सर्जरी से चेहरा बदला, फर्जी दस्तावेज बनवाए और एक नया जीवन शुरू किया।
वह दूसरों के सामाजिक कार्यों की नकल करता, गरीबों की मदद का दिखावा करता और सोशल मीडिया पर खुद को "मानवता का सच्चा सेवक" बताता। असल में वह बड़े व्यापारियों से कालेधन को सफेद करने के लिए रिश्वत लेता, और जमीन घोटालों में शामिल था।
एक दिन उसकी जिंदगी में एक मोड़ आया — एक पत्रकार, अंजलि, ने उस पर शक किया। अंजलि को विवेक के पुराने मामलों की जानकारी मिली और उसने छानबीन शुरू की। धीरे-धीरे परतें खुलती गईं।
आखिरकार, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंजलि ने सारे सबूत पेश किए — नकली दस्तावेज, पुराने केस रिकॉर्ड्स और फोटो। भीड़ के सामने विवेक की असलियत खुल गई।
विवेक गिरफ्तार हो गया। समाज को यह समझ में आया कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती, और हर मुस्कुराता चेहरा सच्चा नहीं होता।
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