“कनिका ने नमन को गले लगाया… ये अलविदा नहीं था — ये वादा था, जो वक़्त से बंधा नहीं था।”
कुछ रिश्ते छूटते नहीं, वो बस थोड़ी देर के लिए उड़ जाते हैं… और अगर वो सच्चे हों, तो लौट भी आते हैं।
“काठगोदाम की गर्मियाँ” एक ऐसी कहानी है जो आपकी यादों की गलियों से होकर गुज़रती है — दोस्ती, प्यार, और उस खामोश जुड़ाव की, जिसे कभी कहा नहीं गया, बस महसूस किया गया।
नमन और कनिका की ये कहानी आपको याद दिलाएगी कि कभी-कभी किसी को छोड़ना दरअसल उसे पूरी तरह पा लेना होता है — क्योंकि सच्चा प्यार वक़्त नहीं मांगता, वो लौट आने की वजह ढूंढ ही लेता है।
📚 अगर आपने कभी किसी को अलविदा कहा हो… लेकिन दिल में आज भी उसके लौटने की उम्मीद जिंदा हो —
तो “काठगोदाम की गर्मियाँ” सिर्फ एक किताब नहीं, आपकी अपनी कहानी है।
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