लोग खो जाते है
कुछ पुरानी चिट्ठियों की तहों में,
कुछ मोबाइल की स्क्रीन में
हर पल, हर टच पर खोखले हो जाते हैं।
कुछ खो जाते हैं
"क्या कहेंगे लोग?" की जंजीर में,
कुछ अपनी ही आवाज़ दबा देते हैं
सिर्फ़ चुप रहने की तमीज़ में।
कुछ खो जाते हैं
दूसरों को खुश करते-करते,
और खुद से इतने दूर हो जाते हैं —
कि लौटने का रास्ता भी भूल जाते हैं।
लोग खो जाते है...
कुछ इश्क के उन्माद में
कुछ शक के गर्म झोंको में
कुछ नौकरी की ख्वाहिश में
कुछ अल्हड़पन में
कुछ जिम्मेदारियों में
कुछ खो जाते हैं धर्म के नाम पर,
कुछ परंपराओं की परतों में,
और कुछ रिवाजों के उस घेरे में
जहां सोच दम तोड़ देती है।
कुछ प्रकृति में
कुछ पतझड़ के बेरंग में
कुछ अंतरिक्ष के अनगिनत तारों में
कुछ हर बार मज़बूत दिखने के बोझ में,
और फिर टूटते भी हैं
तो मुस्कुराते हुए जैसे कोई खूबसूरत तारा...
कुछ खो जाते हैं
बचपन के उस एक मोड़ पर,
जहां वो आखिरी बार
खुलकर हंसे थे
"कुछ खो जाते हैं
खुद को साबित करने की होड़ में,
और साबित कर भी दें,
तो अपने होने का यकीन खो बैठते हैं।"
"कुछ खो जाते हैं
दूसरों की परछाइयों में,
इतना कि खुद की पहचान धुंधली पड़ जाए।
"कुछ खो जाते हैं
अधूरे सवालों के जवाब ढूंढते-ढूंढते,
और जवाब मिलते ही
खुद एक सवाल बन जाते हैं।"
कुछ खो जाते हैं
वक़्त की रफ़्तार में,
जैसे कोई पुराना पन्ना
जो हवा में उड़कर कहीं गुम हो गया।
"लोग खो जाते हैं..."
कभी चुपचाप,
कभी चीख़ते हुए अंदर ही अंदर,
कभी सामने होते हुए भी इतने गुम
जैसे कोई धड़कन
जिसे सुनने वाला कोई नहीं।
और कुछ तो बस इसलिए खो जाते हैं...
क्योंकि किसी ने उन्हें कभी ढूंढा ही नहीं।
ArUu ✍️