कृष्ण – जीवन की अनंत आघार
वृन्दावन की रेत पर जब नन्हे पाँव पड़े,
तो मुरली की धुन में सारा ब्रह्मांड झूम उठा।
हँसी में छिपा बालपन का नाद,
और आँखों में करुणा का अथाह समंदर।
प्रेम उनका खेल था, पर खेल भी साधना था,
राधा के नयनों में जो दीप जले, वही तो अनश्वर था।
त्याग उनका शौर्य था, और शौर्य उनका प्रेम।
कभी रणभूमि के सारथी, तो कभी ग्वालिन के गीत में लय।
त्रृष्णा को देखा, पर बंधन में न बँधे,
करुणा को जिया, पर आसक्ति से परे।
रणनीति में भी धर्म की गंध थी,
और बलिदान में भी मधुर संगीत।
मित्रता उनके जीवन का आभूषण बनी,
सुदामा के आँसू में उनका हृदय पिघल पड़ा।
महलों से अधिक महत्त्वपूर्ण थे वो चावलों के कौर,
जहाँ प्रेम की गिनती थी, धन की नहीं।
कृष्ण का जीवन सिर्फ कथा नहीं,
वो तो चेतना का शाश्वत मार्ग है।
जहाँ हर श्वास कहती है
प्रेम में जीना ही धर्म है,
और धर्म में जीना ही अनंत जीवन।
कृष्ण को मेंने मित्रता में परमतत्व पाया
कृष्ण से हि जिवन का सार पाया
✍️ C M Jadav