तेरे मन्दिर का हूँ दीपक जल रहा
आग जीवन में मैं भर कर जल रहा, जल रहा
तेरे मन्दिर का हूँ दीपक जल रहा
क्या तू मेरे दर्दसे अन्जान है
तेरी मेरी क्या नयी पहचान है
जो बिना पानी बताशा गल रहा
आग जीवन में मैं भर कर चल रहा ...
इक झलक मुझ को दिखा दे साँवरे, साँवरे
मुझ को ले चल तू गधुम की छाँव रे, साँवरे
और छलिया आ आ आ
और छलिया क्यों मुझे तू छल रहा
आग जीवन में मैं भर कर चल रहा ...
मैं तो क़िसमत बाँसुरी के बाँछता
एक धुन से सौ तरह से नाचता
आँख से जमुना का पानी ढल रहा
आग जीवन में मैं भर कर चल रहा
- Umakant