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✒️ कविता : यदि मैं बादल होता
यदि मैं बादल होता,
तो नभ के नीले आँगन में
स्वतंत्र पंछी-सा घूमता,
हर दिशा में नृत्य करता,
धरती माँ की गोद को
अपने स्पर्श से शीतल करता।
यदि मैं बादल होता,
तो बरसता सोच-समझकर,
कहीं अति वर्षा से बाढ़ न आती,
कहीं तपते गाँव-पट्टी में
प्यासे खेत यूँ न तड़पते,
मैं हर जीवन की प्यास बुझाता।
यदि मैं बादल होता,
तो गरीब किसान की झोपड़ी में
सपनों की हरियाली बो देता,
उसके हृदय में विश्वास जगाता—
कि अबकी बार फसल लहलहाएगी,
बच्चों की मुस्कान लौट आएगी।
यदि मैं बादल होता,
तो शहर की पक्की सड़कों पर
जल-जमाव का दुःख न देता,
बल्कि हर बूँद को सँजोकर
तालाब, झील और कुओं तक पहुँचाता,
जहाँ से हर कोई जीवन रस पाता।
यदि मैं बादल होता,
तो रेगिस्तान की तपती रेत पर
छाँव की चादर फैला देता,
ऊँट की थकी चाल को गति देता,
प्यासे मुसाफ़िर को मीठी बूँदें देता,
जीवन को अमृत-रस से सींच देता।
यदि मैं बादल होता,
तो बच्चों की मासूम आँखों में
इंद्रधनुष रच देता,
ताकि हर रंग उनकी हँसी में बस जाए,
हर कठिनाई के बीच भी
खुशियों की बौछार मिल जाए।
यदि मैं बादल होता,
तो धरती और गगन के बीच
संदेशवाहक बन जाता,
प्यार की बूँदें लाकर
नफ़रत की धूल धो डालता,
मानवता का एक नया गीत गा जाता।
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✒️ मौलिकता प्रमाणपत्र
यह प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत कविता "यदि मैं बादल होता" मेरी स्वयं की मौलिक एवं सृजनात्मक रचना है। यह किसी अन्य स्रोत से न तो नकल की गई है और न ही किसी प्रकार से पुनर्लेखित है।
✍️ लेखक : विजय शर्मा एरी
🏠 पता : अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102
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