सूत्र: ईश्वर पाने का कोई उपाय नहीं ✧
“ईश्वर ‘पाना’ नहीं है — वह भीतर घटित होता है।”
व्याख्या
ईश्वर पाने की कोई विधि, साधना या उपाय नहीं है।
वह प्रकृति की तरह है: सहज, स्वतःस्फूर्त, बिना प्रयास के।
जब जीवन प्रेम, आनंद, होश और संतोष से जिया जाता है, तब ईश्वर अपने आप घटित होता है।
प्रेम = हृदय की खुली धड़कन।
आनंद = अस्तित्व के साथ तालमेल।
होश = हर क्षण जागरूक रहना।
संतुष्टि = संतुलन और शांति।
इन चारों का संगम ही जीवन को “अमृत क्षण” बनाता है।
इसके विपरीत, जो साधना, विधि, उपाय या नियम बनाए जाते हैं, वे अक्सर अहंकार को पालते हैं।
साधना का व्यवसाय भविष्य के स्वप्न गढ़ता है — लेकिन कोई भविष्य नहीं है।
केवल यह वर्तमान क्षण ही सब कुछ है — यही सत्य है, यही अमृत है।
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