तेरे नाम – उपन्यास
अध्याय 1 – राधे की दुनिया
कैंपस की गलियों में अगर किसी का नाम सबसे पहले लिया जाता था, तो वह था राधे। उसका नाम सुनते ही सहपाठियों की धड़कनें तेज़ हो जातीं। उसका अंदाज़ ऐसा था कि हर कोई उससे डरता, लेकिन मन ही मन उसकी दबंगई का लोहा भी मानता था।
राधे की चाल में एक अकड़ थी। वह जहाँ से गुज़रता, सबकी नज़रें उसी पर टिक जातीं। उसके माथे पर बिखरे बाल, कंधे पर तौलिया और आँखों में जलती आग—यही उसकी पहचान थी।
लेकिन यह सख़्त और जिद्दी चेहरा भीतर से उतना मज़बूत नहीं था। राधे की ज़िंदगी में बहुत खालीपन था। माँ-बाप का साया बहुत पहले उठ गया था। दोस्तों की भीड़ थी, पर सच्ची दोस्ती का एहसास कहीं खो गया था।
रातें उसके लिए सबसे भारी होतीं। दिन में वह अपने गुस्से और दबंगई से दुनिया को डराता, लेकिन रात के सन्नाटे में वह खुद से डरता था। कई बार छत पर बैठकर वह तारों को ताकता और सोचता—"क्या यही ज़िंदगी है? लड़ाई, गुस्सा और डर? या कहीं कोई और रास्ता भी है?"
लेकिन उसे पता नहीं था कि उसकी ज़िंदगी का रास्ता जल्द ही बदलने वाला है। कोई ऐसा आने वाला है, जो उसकी इस उग्र दुनिया को नरमाई से छूकर बदल देगा।
"राधे की आँखों में आग थी, लेकिन किस्मत उसकी आँखों में अब प्रेम का दीया जलाने वाली थी।"
---
अध्याय 2 – खालीपन की छाया
राधे के बाहरी स्वरूप को देखकर कोई भी सोच सकता था कि वह एक निडर और ताक़तवर इंसान है। लेकिन जो लोग उसकी आँखों में गहराई से झांकते, वे समझ जाते कि वहाँ एक ऐसा खालीपन है जिसे वह दुनिया से छुपाए फिरता है।
उसका बचपन आसान नहीं था। पिता का सख़्त स्वभाव और माँ का जल्दी बिछड़ जाना, दोनों ने उसके मन में गहरी चोट छोड़ी थी। पिता अक्सर कहा करते थे—
"मर्द को दर्द नहीं दिखाना चाहिए।"
शायद इसी वाक्य ने राधे को ऐसा बना दिया था—गुस्सैल, ज़िद्दी और कठोर।
राधे के पास दोस्तों की कमी नहीं थी। कॉलेज में उसके इर्द-गिर्द कई लोग रहते, लेकिन उनमें से कोई भी उसका अपना नहीं था। सब उसकी ताक़त से जुड़े थे, उसके दिल से नहीं। शाम को वह दोस्तों के साथ हंसी-ठिठोली करता, पर जब अकेला होता तो उसके मन में सवाल उठते—
"क्या सच में ये लोग मेरे अपने हैं? अगर एक दिन मैं हार गया, तो क्या ये मेरे साथ खड़े होंगे?"
रातें उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थीं। जब पूरा मोहल्ला नींद में डूबा होता, तब राधे सिगरेट के धुएँ में अपने दर्द को दबाने की कोशिश करता। धुआँ कमरे में फैलता और उसकी आँखें नम हो जातीं। लेकिन वह आँसू बहाने से डरता था।
"जिस वीराने में अब तक राधे भटक रहा था, वहाँ जल्द ही कोई ऐसी रौशनी आने वाली थी जो उसकी आत्मा को नया जीवन देगी।"
---
अध्याय 3 – पहली मुलाक़ात
बसंत उत्सव का माहौल था। हर ओर रंग-बिरंगे कपड़े, हंसी-ठिठोली और संगीत की गूंज फैली थी। भीड़ में भी राधे हमेशा की तरह अकेला खड़ा था। उसकी निगाहें चारों ओर घूम रही थीं, पर मन कहीं और खोया था।
अचानक उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी—सफेद सलवार-कमीज़ में लिपटी, आँखों में झील-सी गहराई और चेहरे पर मासूमियत की चमक। वह निर्जला थी।
राधे की आँखें उस पर ठहर गईं। यह पहली बार था जब किसी को देखकर उसका दिल बेकाबू धड़क उठा। निर्जला ने हल्की मुस्कान दी और आगे बढ़ गई।
उस शाम राधे छत पर बैठा तारों को निहार रहा था। बार-बार वही चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था। पहली बार उसे लगा कि उसकी ज़िंदगी में किसी ने बिना बोले दस्तक दी है।
"राधे की दुनिया अब बदलने वाली थी। निर्जला का आना उसकी ज़िंदगी में बसंत की पहली बयार था।"
---
अध्याय 4 – प्रेम का अंकुर
पहली मुलाक़ात के बाद राधे की दुनिया बदल गई। अब वह अक्सर कॉलेज के गलियारों में घूमता कि कहीं निर्जला की झलक मिल जाए।
निर्जला की सरलता और मासूमियत ने राधे को भीतर से बदल दिया। वह अब बिना वजह झगड़े करने से बचने लगा।
एक दिन लाइब्रेरी में राधे ने निर्जला को देखा। उसने हिम्मत जुटाकर कहा—
"तुम्हें शायद ये किताब चाहिए थी।"
निर्जला ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। राधे के दिल पर यह मुस्कान अमिट छाप छोड़ गई।
"राधे को अब एहसास हो चुका था कि उसका दिल उस मासूम लड़की की ओर खिंच रहा है। यह सिर्फ एक मुलाक़ात नहीं थी—यह एक नई शुरुआत थी।"
---
अध्याय 5 – विरोध की दीवारें
राधे और निर्जला के बीच की नज़दीकियाँ गहरी हो रही थीं। लेकिन निर्जला का परिवार बेहद परंपरावादी था। जब उन्हें यह पता चला, तो घर में सख़्त माहौल बन गया।
राधे का गुस्सा फिर से भड़क उठा। उसने कहा—
"मैं तुझसे दूर नहीं रह सकता।"
निर्जला ने धीमी आवाज़ में उत्तर दिया—
"राधे, प्यार का मतलब दीवारें तोड़ना नहीं, बल्कि दिल जीतना होता है।"
"प्रेम का अंकुर तो फूट चुका था, पर अब उसके सामने समाज और परिवार की कठोर दीवारें खड़ी थीं।"
---
अध्याय 6 – टूटता संतुलन
राधे ने जितनी बार कोशिश की, उसका गुस्सा प्रेम के रास्ते में रोड़ा बन गया। एक दिन कॉलेज में झड़प ने उसकी ज़िंदगी बदल दी। हादसा इतना गंभीर था कि पुलिस और परिवार का झगड़ा बढ़ गया।
अस्पताल में राधे का शरीर घायल था, पर उसके मन में टूटन और अकेलापन गहरा था।
निर्जला हर दिन उसके पास आती, पर वह भी मजबूर थी।
"राधे का शरीर अस्पताल में था, लेकिन उसकी आत्मा कहीं और भटक रही थी।"
---
अध्याय 7 – अधूरी मोहब्बत
समय के साथ राधे की ज़िंदगी और निर्जला का परिवार दोनों में दूरी बढ़ती गई। निर्जला अब मजबूरी में निर्णय लेने लगी थी।
राधे के भीतर का पागलपन अब अकेलेपन में बदल गया। वह अक्सर छत पर बैठता और निर्जला का नाम फुसफुसाता।
"निर्जला अब उसके सामने नहीं थी, लेकिन उसके नाम की मिठास और उसकी यादों की छाया हमेशा राधे के दिल में जिंदा रही।"
---
अध्याय 8 – अंतिम करुणा
राधे ने समझ लिया कि प्रेम केवल पाने का नहीं, बल्कि त्याग और समझदारी का भी नाम है। वह छत पर बैठा, निर्जला के बारे में सोचते हुए धीरे मुस्कुराया।
"अधूरी मोहब्बत हमेशा अधूरी नहीं रहती। वह अमर हो जाती है, और अपने नाम से हर दिल को छू लेती है।"
राधे और निर्जला की प्रेम कहानी इस बात का प्रमाण है कि कभी-कभी प्यार की ताक़त केवल मिलने में नहीं, बल्कि यादों, त्याग और दिल की गहराई में भी होती है।