त्याग भक्ति का स्वरूप है 🌼
त्याग क्या है?
स्वयं को मिटाकर जग को सँवारना,
अपने सुख-दुख को भुलाकर
परहित में जीवन गुज़ारना।
त्याग वही जो भक्त कर जाए,
ईश्वर को पाने में स्वयं को भुला जाए।
भक्त मीरा ने विष का प्याला पी लिया,
कृष्ण नाम में जीवन जी लिया।
त्याग वही जो हनुमान दिखाए,
सीता–राम के चरणों में तन-मन लुटाए।
स्वयं के यश की चाह न मन में लाई,
रामकार्य में जीवन बलिदान चढ़ाई।
त्याग वही जो जननी निभाती है,
अपनी नींद बेचकर संतान को सुलाती है।
ममता में लिपटा हर त्याग अनोखा है,
माँ का व्रत ही सबसे सर्वोच्च लोका है।
त्याग वही जो साधु अपनाते हैं,
माया-मोह छोड़ प्रभु में रम जाते हैं।
कुटिया, चंदन, रुद्राक्ष, भजन की तान,
त्याग से ही बनता है जीवन महान।
त्याग वही जो किसान निभाए,
अपना पसीना धरती पर बहाए।
भूखा रहकर भी बीज बो देता है,
दूसरों की थाली को अन्न दे देता है।
त्याग ही तप है, त्याग ही साधना,
त्याग से ही मिलती है प्रभु की आराधना।
त्याग में ही छुपा है जीवन का मर्म,
त्याग से ही होता है आत्मा का धर्म।
त्याग की अग्नि में जो तप जाता है,
वह संसार से ऊपर उठ जाता है।
त्याग ही वह सेतु है,
जो भक्त को भगवान से जोड़ देता है।
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त्याग न हो तो प्रेम अधूरा है,
त्याग से ही हर जीवन पूरा है।
त्याग है सबसे ऊँचा रत्न,
त्याग से ही मिलता है सत्य का सत्यम्।
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