कलयुग की हम फ़ितरत लेके
बात सतयुग की करते है
लालच झूट फ़रेब से विनाश अपना ख़ुद करते है
हानि लाभ सहना पड़ेगा जो विधि का विधान है
ख़तरा है बस उनसे जो बिना ज्ञान के विद्वान है
ठाना है तो कुछ करना है
या डर के साथ मारना है
अम्र बस एक अंक है
अगर सोच हमारी जवान है
दिल दुखा के दूसरो का
उम्मीद सुख की ख़ुद करते है
कलयुग की हम फ़ितरत लेके
बात सतयुग की करते है
ना तेरा है ना मेरा है ये पाप का जहांन है
कमजोरो पर ज़ोर दिखा के बनते हम महान है
गला घोटलिया इंसानियत का
कैसा ये वरदान है
ज़िंदा तो होंगे
पर ये मरे हुए सम्मान है
अपमान करके लोगो का घर अपना हम शुद्ध करते है
कलयुग की हम फ़ितरत लेके बात सतयुग की करते है l
- pradeep