भारत की संस्कृति
धरती सोने सी चमक रही है, नभ में रंग हजार,
भारत माँ के आँचल में, छिपा है संस्कार।
भाषा, भोजन, भेष में, अनगिन रंग बसे,
हर कोना कुछ कहता है, भावों में रंग रसे।
सदियों की जो गाथाएँ हैं, मंदिर, मस्जिद साथ,
गूँज रहा हर घाट-घाट पर, वेदों का मधुमात।
कभी रंगों की होली है, कभी दीयों की दीपावली,
ईद की मिठास घुलती है, क्रिसमस की खुशहाली।
नृत्य है भरतनाट्यम जैसा, संगीत राग की बात,
कला में जीवन बसता है, संस्कृतियों की सौगात।
कहीं है कथक की थिरकन, कहीं ओडिसी की चाल,
चित्रों में बोलते हैं देवी-देव, हर एक रंग विशाल।
गंगा-जमुनी तहज़ीब यहाँ, दिलों को जोड़ती जाती,
भूख-प्यास, सुख-दुख सब में, बाँटें अपनी थाली।
योग, ध्यान, और आयुर्वेद, दुनिया ने पहचाना,
गुरुकुल से लेकर IIT तक, ज्ञान ने सिर उठाना।
एक धागे में पिरोये हैं, अलग-अलग फूल यहाँ,
विविधता में एकता की, ये अनुपम मिसाल वहाँ।
कहते हैं इसको "संस्कृति", जो दिल से दिल को जोड़े,
भारत की ये आत्मा है, जो सबको साथ में मोड़े।
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