मर्दों की बात मैं क्यों करूं?
उनके हर ज़र्रे में बदल जाने की सुगंध आती है,
कभी ज़िम्मेदारियों की धूप में जलते हैं,
तो कभी ख़्वाबों की बारिश में भीग जाते हैं,,,
चेहरे पर सख़्ती, दिल में दरारें लिए,
वो हँसते हैं ताकि घर मुस्कुराता रहे,,,
अपने दर्द को कपड़ों की तरह तह कर,
रोज़ नयी उम्मीद पहन कर निकल जाते हैं,,,,,
मर्दों की बात मैं क्यों करूं?
उनके हर ज़र्रे से बदल जाने की सुगंध आती है,
वो लम्हों में पत्थर, पल में समंदर बन जाते हैं,
और कहानियों में बस नाम छोड़ जाते हैं,,,
- Manshi K