सुबह की पहली धूप जब चेहरे पे मुस्कान लाती है,
जैसे कोई दुआ चुपके से रूह को सहलाती है।
फिज़ा में घुला होता है इक सुकून सा पैगाम,
हर किरण में छुपा होता है खुदा का सलाम।
नींद की चादर जब धीरे से उतरती है,
उम्मीदों की लौ फिर से भीतर चमकती है।
सुबह की ये धूप, बस धूप नहीं होती,
ये तो ज़िंदगी की नयी किताब की पहली पंक्ति होती।
- Naina Khan