अहंकार रहित बोध — मानव की उलझन और सरल सत्य
मानव सदा खोज में रहा है।
ज्ञान सत्य को पकड़ना चाहता है,
धर्म ईश्वर को समझना चाहता है,
विज्ञान ब्रह्मांड का रहस्य खोलना चाहता है।
पर जितना वे खोजते हैं, उतना ही उलझ जाते हैं।
क्योंकि सत्य विस्तार में नहीं है —
वह बिंदु में है।
जितना दूर देखते हैं, उतना ही भीतर से छूट जाता है।
धर्म जब धारणा में उलझता है, वह मार्ग खो देता है।
विज्ञान जब नियमों की भूलभुलैया में जाता है,
तो वह रहस्य से और दूर पहुँच जाता है।
भोगी सुख ढूँढता है, और सुख ही उससे छूट जाता है।
सत्य और सुख — दोनों खोज से नहीं मिलते।
वे घटित होते हैं जब “खोजने वाला” मिट जाता है।
जब “मैं” कुछ जानना नहीं चाहता,
तब जानना अपने आप घटता है।
वह अवस्था है जहाँ अहंकार नहीं,
केवल अस्तित्व का प्रवाह है।
मैं कुछ नहीं कर रहा —
मुझसे होकर सब हो रहा है।
मैं ईश्वर का यंत्र हूँ,
इसलिए परिणाम, फल और नाम से दूर हूँ।
यहीं निकटता है।
यह बोध अनुभव है, विचार नहीं।
यही वह सरल रहस्य है जिसे विस्तार में खोजने की कोई ज़रूरत नहीं।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲