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🌾 एक ही मिट्टी के लोग
क्यों बाँटते हो इंसानों को,
नामों, जातों, खानदानों में?
रगों में बहता है लाल ही रक्त,
फिर फर्क कहाँ इन प्राणों में?
कोई ऊँचा, कोई नीचा —
ये सोच है बस मन की दीवार,
गिरा दो इसे, बना दो धरती,
जहाँ सब हों एक समान आधार।
किसने कहा था बाँटो तुम,
अपने ही भाई को पहचान से?
जो जन्मे हैं उसी धरा पर,
वो अलग नहीं इस जान से।
कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं,
प्रेम से पवित्र कोई जात नहीं,
जो इंसान को इंसान माने,
वो सबसे महान, सबसे खास वही।
चलो मिलकर कसम ये खाएँ,
अब न बाँटेंगे दिलों की रेखा,
हम सब एक ही मिट्टी के लोग हैं —
फिर क्यों लगे कोई दूजा, पराया चेहरा?
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