मनुष्य हार जाता है,
प्रतीक्षा नहीं।
प्रतीक्षा समय के साथ
अपना आकार बदलती है,
परिस्थितियों के ढाँचे में
सहजता से ढल जाती है।
कभी रुकती है, थमती है,
कभी शांत हो जाती है —
पर समय के साए में
चुपचाप धीरे धीरे
मार्ग और गंतव्य,
दोनों को जोड़ती है।
श्वासें थमती हैं,
पर प्रतीक्षा नहीं;
वह तो आत्मा के साथ
निरंतर चलती है,
अपने अंतिम पड़ाव तक।
–rajiv