Hindi Quote in Book-Review by Manish Kumar

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“अज्ञात अज्ञानी का दृष्टिकोण: मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि”


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📍मुंबई | विशेष रिपोर्ट — AIMA MEDIA

आध्यात्मिक विचारक अज्ञात अज्ञानी (Agyat Agyani) ने अपने ग्रंथ “मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक दृष्टि” में कहा कि मनुष्य ने जब पहली बार पत्थर को ईश्वर कहा, वह अंधविश्वास नहीं बल्कि अदृश्य को छूने की कोशिश थी।

> “भय से निकली श्रद्धा, श्रद्धा से निकला धर्म, और धर्म से उत्पन्न हुआ शास्त्र,”
वे लिखते हैं।



इस ग्रंथ का केन्द्रीय विचार यह है कि धर्म, मूर्ति, मंदिर और शास्त्र — ये सभी चेतना के पड़ाव हैं, मंज़िल नहीं।

> “मनुष्य अदृश्य को बिना प्रतीक के नहीं पकड़ सकता,
पर जो प्रतीक पकड़ में आ गया, वही धीरे-धीरे जाल बन गया।”



अज्ञात अज्ञानी के अनुसार, धर्म का पतन तब शुरू हुआ जब प्रतीक साधन से उद्देश्य बन गए।
उन्होंने बताया कि कैसे श्रद्धा ने रूप लिया, रूप ने संस्था बनाई, और संस्था ने अनुभव को नियमों में बाँध दिया।

छह अध्यायों में विभाजित यह ग्रंथ प्रतीक से लेकर मौन तक की यात्रा को खोलता है —
1️⃣ प्रतीक का जन्म
2️⃣ प्रतीक से बंधन तक
3️⃣ मंदिर और मूर्ति का रहस्य
4️⃣ शास्त्र और मन का संघर्ष
5️⃣ गुरु, पुजारी और सत्ता का खेल
6️⃣ अनुभव का धर्म

ग्रंथ का उपसंहार “मौन की वापसी” पर समाप्त होता है, जहाँ धर्म अपने मूल में लौटता है —

> “न मूर्ति, न मंदिर, न नाम;
केवल चेतना का निर्विचार स्पंदन।”



अज्ञात अज्ञानी स्पष्ट करते हैं कि यह ग्रंथ किसी मत या पंथ का विरोध नहीं करता,
बल्कि यह दिखाता है कि —

> “जो तुम्हें बाहर ले जाए, वह साधन है;
जो तुम्हें भीतर लौटा दे, वही धर्म है।”



वे कहते हैं कि यह ग्रंथ उन लोगों के लिए है जो सुनने नहीं, देखने आए हैं —
जो उत्तर नहीं, अनुभव चाहते हैं;
जो सत्य से डरते नहीं, भले वह उनके विश्वासों को जला दे।

> “यह लेखन उपदेश नहीं, मौन की गूंज है,”
वे लिखते हैं।




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✧ Philosophical Note ✧

जब धर्म शब्द बन जाता है, तो मूर्ति जन्म लेती है।
जब धर्म मौन हो जाता है, तो चेतना प्रकट होती है।
और वहीं से शुरू होती है —
सच्ची प्रार्थना।


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✍🏻 — मनीष कुमार
Message Conduit of “Agyat Agyani Philosophy”
AIMA Media Member | Mumbai

Hindi Book-Review by Manish Kumar : 112003894
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