ये किनकी बेटियाँ हैं?
जो आज नीला आसमान ओढ़े
इतिहास लिख रही हैं..
हर चौके के साथ, हर आँसू के पार जाकर |
ये उन्हीं घरों की बेटियाँ हैं,
जहाँ बेटी के जन्म पर मौन नहीं पसरा
जहाँ किसी ने यह नहीं कहा...
“चलो अगली बार बेटा होगा |”
जहाँ पिता ने सिर झुकाकर नहीं,
कंधा झुकाकर बैग उठाया था
मैदान तक छोड़ने के लिए |
जहाँ माँ ने कहा था..
“धूप से डर मत, रंग से नहीं हौसले से पहचान होगी तेरी |”
जहाँ थाली में सिर्फ रोटी नहीं,
सपनों का भरोसा परोसा गया था |
उन्होंने बेलन की जगह बल्ला थमाया,
ओढ़नी की जगह जर्सी दी,
सीने से लगाकर कहा...
“तू कर, हम हैं न तेरे साथ |”
और जब बेटी मैदान में उतरी,
तो वह अकेली नहीं थी..
उसके साथ खड़ा था
हर वह पिता जिसने ताने नहीं सुने, बल्कि तान दिया हौसला |
हर वह माँ जिसने “क्या ज़रूरत है” नहीं कहा,
बल्कि कहा - “ज़रूरत है तेरे सपनों की दुनिया को।”
आज जो जीत की हँसी गूंज रही है,
वह सिर्फ ट्रॉफी जीतने का जश्न नहीं..
वह उन दीवारों की गिरती आवाज़ है,
जहाँ लिखा था.. “लड़कियां खेल नहीं सकतीं |”
अब खेल बदल गया है,
क्योंकि कुछ माँ-बापों ने
परंपरा से ज़्यादा
पलकों पर बेटी का सपना रखा |
और जब माँ-बाप हौसला बन जाएं,
तो बेटियाँ सिर्फ खेल नहीं जीततीं...
वे इतिहास लिख देती हैं |
~रिंकी सिंह ✍️
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