"इश्क़ की कसक"
तेरी चाहत में अब जीना भी तो दुश्वार हो गया,
रोता है दिल उस दिन को क्यों तुझसे प्यार हो गया।
हँसते थे जो ख्वाब कभी मेरी हर रात में,
आज हर सपना आँसुओं का बीमार हो गया।
तेरे बिना हर लम्हा सजा बनकर ढलता रहा,
वक़्त भी जैसे मुझसे ख़फ़ा यार हो गया।
तेरी बातों की खुशबू जो रग-रग में बसी थी,
अब वही हर एहसास तलबगार हो गया।
मैंने तो तुझमें ही खुदा को देख कर पूजा था,
तू बेवफ़ा निकला और इмиान हार हो गया।
रिश्तों की उस किताब में नाम तेरा था सबसे ऊपर,
पन्ना वही आज दर्द का अख़बार हो गया।
अब दुआ भी करती है मुझसे सवाल हर रात,
क्यों तेरा इश्क़ ही मेरा इम्तहान हो गया।
आर्यमौलिक