मोहब्बत के साइड इफ़ेक्ट
डॉक्टर ने पूछा, “क्या तकलीफ़ है आपको?”
हम बोले, “इश्क़ हुआ है, बाक़ी सब ठीक है साहब।”
नींद गई, चैन गया, भूख ने भी इस्तीफ़ा दे दिया,
मोबाइल हाथ से चिपका है जैसे फ़ेवीक्विक लगा हो कोई अदृश्य दीदार।
पहले जो फ़िल्में बोरिंग लगती थीं, अब सब रोमांटिक हो गईं,
सब्ज़ी भी मुस्कुराने लगी, दाल में भी शायरी उभर आई है कहीं।
दोस्त कहते हैं, "भाई हमसे भी बात कर लिया कर,"
हम कहते हैं, "नेटवर्क नहीं है,"
असल में नेटवर्क तो दिल में फुल सिग्नल पर है मगर!
पैसे का वजन हल्का हो गया,
जेब डाइट पर चली गई,
चॉकलेट, गिफ्ट और कैंडल में
पूरी तनख़्वाह घुल गई।
गूगल अब डॉक्टर नहीं,
बस उसी की डीपी ढूँढता है,
हम हर पोस्ट में उसी जैसा चेहरा
फ़िल्टर लगाके गढ़ता है।
पहले हम शेर थे, अब टेडी बन गए,
पहले आग थे, अब कैंडल बन गए,
मोहब्बत ने ऐसा मेकओवर किया,
कि हम खुद के ही फ़ैन पेज बन गए।
और जब मोहब्बत ने अचानक मुँह मोड़ लिया,
तो साइड इफ़ेक्ट पूरा कमाल दिखा गया,
जो हँसी मुफ्त में बाँटते थे,
वो "दर्द" पर कविता लिखने लग गए।
अब हर नए इश्क़ से पहले
एक सवाल ज़रूरी हो गया है
“भाई इलाज मिलेगा या
फिर से एडमिशन वहीं होगा?”
आर्यमौलिक