दूसरी बार
पहली मुलाकात भूल गया
मिले हम दूसरी बार।
दूसरी बार मिले हम
उसकी आंखों में चिंगारी थी।
समझ गया मैं उसे
चुप रहना जरूरी था।
वो चिंगारी नहीं, शायद
मेरे लिए इशारा कुछ था!
जैसे सदियों से सोया हुआ
कोई प्रेम-ध्रुवतारा था?
डर था कि लफ्ज़ न तोड़ दें
एक नाजुक किनारा था।
अब न पहेली, न रही खामोशी,
बस एक एहसास गहरा है।
पहली मुलाकात भूल गया
दूसरी मुलाकात भी भूल गया।
यह तो लिपि ने कहा, लिखों भैया
पहली मुलाकात का फलसफा!
ये कैसी कहानी है जो
दोनों ने बिन कहे पढ़ा है।
लिखने का बहाना ढूंढा
दूसरी मुलाकात को चुना।
आप भी यदि भूल जाएं
आप की पहली मुलाकात
दूसरी बार प्रयास करना
पढ़ने के लिए शुक्रिया।
- Kaushik Dave