Hindi Quote in Funny by Rajeev Namdeo Rana lidhori

Funny quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

व्यंग्य  :- इच्छाधारी कवि
                 (- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी')

हम सदियों से अपने बुजुर्गों से यह सुनते आ रहे हैं कि इच्छाधारी नाग होते हैं कई लोग इन्हें देखने का झूठा दावा भी उसी प्रकार से करते हैं जैसे गधे के सींग होते हैं। या आदमियों की पूंछ होती है अब ये बात अलग है कि यह पूंछ अदृश्य होती है जो कि मालिक/नेता रुपी विशेष शक्ति शाली लोगों को ही दिखाई पड़ती है।
ठीक इसी प्रकार ईच्छाधारी कवि होते हैं जो कि सुनने वाले और छापनेवाले के अनुसार अपना और अपनी उसी पुरानी कविता को मैकप करके उसे सामने परोसने में माहिर होते हैं।
कार्यक्रम संयोजक के सामने तो कवि इतने जल्दी रुप बदल लेते हैं कि सामने वाला यह सोचकर यह जाता है कि इससे बड़ा प्रशंसक तो मेरा कोई और हो ही नहीं सकता।
बैसे इच्छाधारी कवि पीछे लगे बेनर को देखकर ही अपना रुप बदल लेते हैं।
ऐसे ही कवि ने तो एक कविता को रचकर उसमें कुछ शब्द को खाली स्थान की तरह प्रयोग करके उसे नयी विधा ही करार दे दिया है और मजे कि बात यह है कि कुछ प्लास्टिक के चमचे झूठी प्रशंसा कर उनसे मंचासीन होने या सम्मान पत्र हथियाने में ठीक उसी प्रकार सफल हो जाते हैं जैसे सब्जी बाजार में गाय, बैल द्वारा सब्जी पर मुंह मारने पर डंडे खाने के बाद भी थोड़ा बहुत तो मुंह में दबाकर भागने में सफल हो जाते हैं।
    बस फिर कोई भी हो वह शब्द उनकी कविता में खाली भरने की तरह फिट हो जाता है भले ही अर्थ का अनर्थ हो जाये इनकी बला से इन्हें  तो अपनी कविता सुनाकर बह फोटो खिंचवाना है और रील बनाने से मतलब है। भले ही मोबाइल पुराना हो। इसे हम बुढ़ापे में सठियाना कह सकते हैं।
ये बहुत बड़े इच्छाधारी कवि हैं जो पैर तो कब्र में लटके हैं लेकिन चार कविता लिखकर ही प्रसिद्धि की वैतरणी पार करना चाहते हैं।
ये इच्छाधारी कवि विशेष पर्व, जंयती आदि अवसर पर अपने एवं अपनी एक ही कविता का रूप बदलकर चापलूसी और झूठी प्रशंसा की चासनी में लपेट कर सुना कर अपनी आत्मा के उद्धार में लगे रहते हैं। भले ही सुनने वाले पचास बार इसे सुन चुके हैं।
कुछ इच्छाधारी कवियों में संचालन करने की भी तीव्र इच्छा ठीक उसी तरह होती है जैसे शुगर के मरीज को मीठा खाने कि या बीपी के मरीज को नमकीन खाने। भले ही संचालन की एबीसीडी नहीं जानते हो उन्हें तो बस माइक पकड़ने से मतलब है।
बैसे तो इच्छाएं अनंत होती है जितनी पूरी करो उतनी ही मंहगाई की तरह बढ़ती ही जाती है।
कुछ इच्छाधारी वरिष्ठ कवियों को सींग कटाकर बछड़े बनने की इच्छा होती है ताकि वे मंच पर कवयित्रियों को इंप्रैस कर सके भले ही उन्हें दुलत्ती खाना पड़े।
वहीं कुछ नवोदित इच्छाधारी कवि तो शीघ्र ही बड़ा बनने की इच्छा लिए फिरते रहते कविता की नर्सरी पढ़ी नहीं और सीधे कालेज में (एम. ए.) के लिए एडमिशन फार्म भरने लगे और कुछ तो इनसे भी दो कदम आगे है वे डायरेक्ट बिहार से डॉ. की डिग्री हथिया लाते हैं।
ज्यों ज्यों कवि वरिष्ठ या कहें कि गरिष्ठ होता जाता है त्यों-त्यों उसकी इच्छाएं मंहगाई की तरह बढ़ती जाती है।
जैसे आपने को वरिष्ठ कहलाने की, कवि गोष्ठी में अध्यक्षता करने की, मुख्य अतिथि के साथ फोटो खिंचवाने की, बार-बार सम्मानित होने की जैसी अनंत इच्छाओं को दिल में रखे कब ऊपर चलें जाते हैं पता नहीं चलता।
मनुष्य यदि अपनी इच्छाओं पर काबू पा सके तो उससे सुखी आदमी संसार में कोई नहीं होगा।
लेकिन कवि अपनी  अनंत इच्छाओं को धारण किये हुए स्वयं को उन्हें पूरा करने में लगा रहता है। कुछ स्वयं भू महाकवि तो इसके लिए वकायदा अपने चार-छह चेले लगा लेते हैं वे इनकी अधूरी इच्छाएं पूरी करने को प्रयास करते करते खुद भी कब इच्छाधारी कवि बन जाते हैं पता ही नहीं चलता है।
कुछ इच्छाधारी कवियों की इच्छाएं पूरी करने में बेचारे संयोजक की हालत ऐसी हो जाती है कि न तो निगलते बनता है और न ही उगलते।
ये वरिष्ठ इच्छाधारी अपने वरिष्ठ होने का पूरा पूरा लाभ उठाते हुए अपने छैला और संयोजकों पर जबरन जबाब बनाकार अपनी अनेक इच्छाएं पूरी करवा लेते हैं।
बैसै तो इच्छाधारी सांपों की विशेष पूजा नागपंचमी को की जाती है लेकिन इच्छाधारी कवियों की पूजा साठ, पचहत्तर अस्सी या सौ साल के होने पर की जाती है अथवा यदि कोई शासकीय सेवा में रहे तो सेवानिवृत्ति के दिन की जाती है।
मजे की बात ये है कि चेला और नये कवि इन वरिष्ठ इच्छाधारियों की इच्छाएं इस लालच में पूरी करते रहते हैं कि शायद इनके द्वारा कभी 'मणि' मिल जाए लेकिन ये भी बहुत घाघ होते हैं। बीच बीच में समय समय पर मणि के दर्शन तो कराते रहते हैं लेकिन मरते दम तक किसी को देते नहीं है और हर चेले को यही भ्रम बना रहता है कि मणि तो ये केवल मुझे ही देंगे।
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
#######

Hindi Funny by Rajeev Namdeo Rana lidhori : 112008859
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now