गोरख वाणी : नारी चेतना
नारी न माया, न ही बंधन,
यह गोरख की वाणी बोली।
जिस देह में चेतन बसता है,
वह कैसे हो सकती होली?
योग न पूछे नर या नारी,
आत्मा का होता है पंथ।
जहाँ साधना जाग उठे मन में,
वहीं टूटें सब मिथ्या ग्रंथ।
जिसने जननी को हेय कहा,
वह सत्य से अनजान रहा।
गोरख बोले—जिस कोख से जन्मा,
उसका अपमान अपमान रहा।
योगिनियाँ भी चलीं पथ पर,
हठ और धीरज साथ लिए।
लोक-भाषा में ज्ञान दिया,
ताकि नारी भी बात जिए।
न चूड़ी रोकी, न घूँघट पूछा,
न कर्मकांड की दीवार।
गोरखनाथ ने खोल दिए,
नारी के अंतर के द्वार।