यह भाग्य एक घूमते हुए चक्र की तरह है,जिस तरह पहिया घूमता है तो उसकी एक अर कभी ऊपर आती है तो कभी दूसरी,उसी प्रकार भाग्य भी निरन्तर समय की गति के अनुसार परिवर्तनशील रहता है,जब सूर्य हमारे समक्ष होता है तो कहा जाता है कि सूर्योदय हो गया है, परन्तु वास्तव में उसका उदय हुआ ही नहीं,वह तो एक जगह स्थिर है,अपनी यात्रा में पृथ्वी उसके मार्ग से होकर गुजरती है, जिसके परिणामस्वरूप वह हमे दिखाई देता है।।
इसी प्रकार विधाता सभी प्राणियों और सभी जीवों में व्याप्त है,उसकी स्थिति भी सदा रहती है, ऐसा नहीं होता कि ईश्वर किसी समय ना रहे,जब उसका अस्त नहीं होता,तो उदय कैसे हो सकता है।हम अपनी अपेक्षा से ही भाग्य का उदय मानते हैं,इस प्रकार भाग्य का उदय सूर्य के उदय की तरह अपनी अपेक्षा से है।
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