पता नही किस और मुड़ जाती है जिंदगी,
कभी पीपल की छांव,
तो कभी रेगीस्तान की धुप है जिंदगी।
देके सुकुन एक पल का,
हरपल बैचेन करती है जिंदगी।
कभी खुशीयों की चादर पर,
तो कभी गम के बादलों में लिपट जाती है जिंदगी।
ज़हन में आग लगा कर,
दिखावे के शहर में ले जाती है जिंदगी।
आंखों की नमी को छुपाकर,
अधरों की झूठी मुस्कान है जिंदगी।
डर सा लगता है अब तो,
अगर दे खुशियां ये जिंदगी।
पता नही किस कांटों को लिपटकर
लाई है जिंदगी।
-यशकृपा
-Shital Goswami (Krupali)
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