मुक़द्दर जब रूठ जाता है,
हर सपना चूर हो जाता है,
जो कल तक था अपना सा,
आज वो भी दूर हो जाता है।
चलते-चलते रुक जाती हैं राहें,
बोलते-बोलते चुप हो जाती हैं आहें।
हर मुस्कान में दर्द छुपा होता है,
जब किस्मत अपना रुख बदलता है।
दिल की चाहत भी अधूरी रह जाती है,
सच्चाई भी झूठी सी लगने लगती है।
कभी किस्मत पर ग़ुस्सा आता है,
कभी खुद से भी नज़र नहीं मिलती है।
आँखें रातभर जागती हैं,
बस एक उम्मीद के सहारे।
कि शायद सुबह कुछ कहे,
कुछ बदल दे ये सितारे।
जो ठोकरें देती है ज़िंदगी,
वो ही सिखाती है संभलना।
जो छीन लेती है सब कुछ,
वही देती है खुद से मिलना।
मुक़द्दर कितना भी रूठे,
हम मुस्कुराना नहीं छोड़ते।
क्योंकि राख में भी चिंगारी होती है,
जो एक दिन शोला बनती है।