*इश्क की राह*
तेरा ज़िक्र दिल में जज़्बात बनके है अभी,
इश्क़ का वो गहरा समंदर बाकी है अभी।
रात की सैर में तू ख़्वाब बनके आता है,
चाँद में तेरा वो नूर बरसता है अभी।
ज़िंदगी एक सवाल, तू जवाब बन गया,
हर सवाल का वो मानी राकी है अभी।
तुझ बिन अधूरी सी हर धड़कन लगती है,
वो मोहब्बत का आलम बाकी है अभी।
खामोशी में भी तेरी बात गूँजती है,
सन्नाटों में वो लहजा नाकी है अभी।
वक़्त की राह में कांटे बिछे हैं बहुत,
फिर भी तुझ तक का रास्ता बाकी है अभी।
तूने छुआ जो दिल, वो शमा जल उठी,
उस शमे का वो उजाला राकी है अभी।
हर साँस में तेरा नाम बस्ता है कहीं,
वो इश्क़ का जुनून, वो जाकी है अभी।
फूल खिलते हैं, मगर तुझ सा रंग कहाँ,
बाग़-ए-दिल में वो बहार बाकी है अभी।
तुझसे बिछड़कर भी तुझ में ही जीता हूँ,
वजूद का वो सवाल बाकी है अभी।
चाँदनी रात में तेरा इंतज़ार है सजा,
वो बेचैनी का सिलसिला बाकी है अभी।
तेरा हर लफ्ज़ है जैसे कोई दास्तान,
दिल के पन्नों में वो किताब बाकी है अभी।
ज़िंदगी एक सफ़र, तू मंज़िल बन गया,
उस मंज़िल का वो ख़्वाब बाकी है अभी।
बारिश की बूँदों में तेरा अक्स नज़र आए,
हर कतरे में वो तस्वीर राकी है अभी।
तू दूर है मगर, पास है मेरे वजूद में,
वो रिश्ता-ए-दिल का इक़रार बाकी है अभी।
हर कदम पे तेरा साथ महसूस होता है,
वो नज़दीकी का वो एहसास बाकी है अभी।
तेरे ख़तों की वो स्याही, वो लफ्ज़ों का जाम,
हर लफ्ज में वो पैग़ाम बाकी है अभी।
इश्क़ ने सिखाया है जीने का फ़न हमें,
वो सबक़-ए-ज़िंदगी का मज़ा बाकी है अभी।
तूने दी थी जो दुआ, वो क़बूल हो गई,
उस दुआ में तेरा वो करम बाकी है अभी।
ग़ज़ल तुझ तक पहुँचे, यही है अरमाने सुहेल,
मेरे लफ्ज़ों में तेरा वो जाम बाकी है अभी।
लेखक सुहेल अंसारी।सनम
@9899602770
suhail.ansari2030@gmail.com